🧭 परिचय
- यह अध्याय 600 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी तक के राजनीतिक, आर्थिक और नगरीय विकास की चर्चा करता है।
- प्रमुख विषय: महाजनपदों का उदय, मौर्य साम्राज्य, गुप्त शासन, कृषि का विकास, शहरीकरण, भूमि अनुदान, और अभिलेख।
🏹 1. प्रारंभिक राज्य – जनपद और महाजनपद
🔹 जनपद:
- ‘जनपद’ का अर्थ है – जन की बस्ती या निवास स्थान।
- 6वीं शताब्दी ई.पू. तक कई जनपद महाजनपदों में परिवर्तित हो गए।
🔹 महाजनपद:
- 16 प्रमुख महाजनपद: जैसे मगध, कोसल, वत्स, अवंति आदि।
- इनकी राजधानियाँ प्रायः किलाबंद थीं।
🔹 कर व्यवस्था:
- ‘भाग’: कृषकों से लिया गया कर (आमतौर पर उपज का 1/6 भाग)।
- अन्य कर: पशुपालकों, शिल्पकारों, व्यापारियों से भी वसूले जाते थे।
🏛️ 2. मौर्य साम्राज्य का उदय (321 ई.पू. के बाद)
🔹 प्रमुख स्रोत:
- अर्थशास्त्र – चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा रचित, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर ग्रंथ।
- मेगस्थनीज़ की इंडिका – यूनानी राजदूत की पुस्तक।
- अशोक के अभिलेख – पत्थरों और स्तंभों पर खुदे लेख, प्राकृत भाषा में।
🔹 प्रशासन:
- चंद्रगुप्त मौर्य – संस्थापक, राजधानी पाटलिपुत्र।
- अशोक – सबसे प्रसिद्ध शासक, धम्म का प्रचारक।
- प्रमुख अधिकारी: अमात्य, नगरक, सामाहर्ता, धम्म महामात्र आदि।
🪔 3. अशोक और उसका धम्म
- अशोक ने ‘धम्म’ की नीति अपनाई – यह नैतिक आचार संहिता थी।
- धम्म के सिद्धांत: बड़ों का आदर, सभी धर्मों का सम्मान, अहिंसा आदि।
- धम्म महामात्रों की नियुक्ति – धम्म के प्रचार हेतु।
📜 4. मौर्य पश्चात राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन
🔹 नए राजवंशों का उदय:
- शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त आदि।
- गुप्त वंश (चौथी–छठी शताब्दी): स्थायित्व और सांस्कृतिक उत्कर्ष का युग।
🔹 भूमि अनुदान:
- शासकों ने ब्राह्मणों और मंदिरों को भूमि दान देना आरंभ किया।
- ताम्र पत्रों और शिलालेखों पर दान की जानकारी मिलती है।
- प्राप्त अधिकार: कर वसूली, बेगारी (विष्टि) लेना, भूमि स्वामित्व।
💰 5. कृषि का विकास
🔹 उन्नत कृषि पद्धतियाँ:
- लोहे के हल, धान की रोपाई प्रणाली का प्रयोग।
- सिंचाई के लिए कुएँ, नहरें, तालाबों का निर्माण।
🔹 गृहपति (गहपति):
- समाज की इकाई: गहपति – परिवार का मुखिया, खेत और श्रमिकों का प्रबंध करता था।
🏙️ 6. नगरों और व्यापार का विकास
🔹 प्रमुख नगर:
- पाटलिपुत्र, मथुरा, उज्जैन, तक्षशिला आदि।
- ये नगर प्रशासन, व्यापार, शिल्पकला के केंद्र थे।
🔹 शिल्पकार और श्रेणियाँ:
- श्रेणियाँ – कारीगरों और व्यापारियों के संघ।
- श्रेणियाँ उत्पादन, मूल्य निर्धारण और प्रशिक्षण का कार्य करती थीं।
🪙 7. व्यापार और मुद्रा प्रणाली
- भारत का व्यापार रोम, चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला।
- पंच-चिह्नित सिक्के, गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएँ (दीनार) प्रचलन में थीं।
- प्रमुख बंदरगाह: अरिकमेडु, तम्रलिप्ति, भरूच आदि।
📖 8. साहित्य और अभिलेख
🔹 ग्रंथ और साहित्य:
- संगम साहित्य (तमिल) – नगर, व्यापारी और समाज का वर्णन।
- ब्राह्मण ग्रंथ, धर्मसूत्र, मनुस्मृति – वर्ण व्यवस्था और दान का विवरण।
🔹 प्रशस्तियाँ:
- प्रशस्ति – राजा की प्रशंसा में लिखे गए लेख (उदाहरण: इलाहाबाद स्तंभ लेख – समुद्रगुप्त की प्रशंसा, लेखक हरिषेण)।
🏺 9. समाज की संरचना
🔹 वर्ण व्यवस्था:
- ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार चार वर्ण:
- ब्राह्मण (पुरोहित), क्षत्रिय (योद्धा), वैश्य (व्यापारी), शूद्र (सेवक)
- यथार्थ में समाज बहुस्तरीय और जटिल था।
🔹 दास और विश्टि:
- दास/कर्मकार: घरेलू या कृषि कार्य में लगे गुलाम।
- विश्टि: जबरन श्रम, जिसे कर के रूप में लिया जाता था।
🧱 10. शहरीकरण की सीमाएँ
- गुप्तकाल के पश्चात नगरों का अवसान (decline) आरंभ।
- व्यापार में कमी, मुद्राओं और अभिलेखों की संख्या में गिरावट।
- कृषि पर आधारित समाज और भूमि अनुदान आधारित अर्थव्यवस्था प्रमुख हो गई।
📝 महत्वपूर्ण शब्दावली (Important Terms)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| जनपद | जन की बस्ती |
| महाजनपद | बड़ा राज्य |
| गहपति | गृहस्वामी या भूमिपति |
| प्रशस्ति | राजा की प्रशंसा में लेख |
| धम्म | अशोक द्वारा प्रचारित नैतिक शिक्षा |
| विश्टि | अनिवार्य (जबरन) श्रम |
| श्रेणि | व्यापारियों/कारीगरों के संघ |
| भाग | उपज का कर (कर प्रणाली) |
📌 निष्कर्ष
600 ई.पू. से 600 ई. तक भारत में:
- राज्यों और साम्राज्यों का निर्माण हुआ,
- कृषि और भूमि कर व्यवस्था विकसित हुई,
- धार्मिक और सामाजिक विचारधाराओं का विकास हुआ,
- और नगरों, व्यापार तथा शिल्पकला का विस्तार देखा गया।








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