3 & 8 अंकों वाले प्रश्न उत्तर- पाठ 8 कक्षा 12 इतिहास: किसान, जमींदार और राज्य PYQs & NCERT Book Questions

By gurudev

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🟢 3 अंक वाले प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. 16वीं और 17वीं शताब्दी में भारतीय कृषि की विशेषताएँ लिखिए।

(CBSE 2002, 2012)
उत्तर:

  1. भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर थी और सिंचाई सुविधाएँ सीमित थीं।
  2. किसान छोटे-छोटे भूखंडों पर खेती करते थे और अधिकांश भूमि अनियमित थी।
  3. धान, गेहूँ, ज्वार, बाजरा और कपास जैसी फ़सलें प्रमुख रूप से बोई जाती थीं।

प्रश्न 2. ‘जोतर’ और ‘पहलदार’ में अंतर लिखिए।

(CBSE 2003, 2011)
उत्तर:

  1. जोतर – वे कृषक थे जिनके पास भूमि की स्वामित्व अधिकार होते थे।
  2. पहलदार – वे बटाईदार या किरायेदार किसान थे जो भूमि मालिक से भूमि लेकर खेती करते थे।
  3. पहलदार को उपज का निश्चित भाग ज़मींदार या मालिक को देना पड़ता था।

प्रश्न 3. मुघल प्रशासन में ‘ज़ब्त’ प्रणाली की व्याख्या कीजिए।

(CBSE 2004, 2015)
उत्तर:

  1. ज़ब्त राजस्व वसूली की एक पद्धति थी।
  2. भूमि को मापा जाता और औसत उपज व बाज़ार मूल्य के आधार पर कर तय किया जाता।
  3. यह प्रणाली अकबर के शासनकाल में टोडरमल द्वारा व्यवस्थित की गई थी।

प्रश्न 4. 17वीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में ज़मींदारों की भूमिका समझाइए।

(CBSE 2005, 2018)
उत्तर:

  1. ज़मींदार राज्य और किसानों के बीच मध्यस्थ थे।
  2. वे कर संग्रह करते और राज्य को सौंपते थे।
  3. स्थानीय स्तर पर ज़मींदारों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी बहुत अधिक था।

प्रश्न 5. ‘राजस्व किसान के लिए बोझ’ क्यों था?

(CBSE 2007, 2016)
उत्तर:

  1. कर दरें बहुत ऊँची थीं, लगभग फसल के एक-तिहाई हिस्से तक।
  2. सूखा या अकाल होने पर भी कर देना पड़ता था।
  3. कर न चुकाने पर ज़मींदारों द्वारा किसानों को दंडित किया जाता था।

प्रश्न 6. मुग़ल काल में गाँवों में आत्मनिर्भरता के उदाहरण दीजिए।

(CBSE 2008, 2017)
उत्तर:

  1. ग्रामीण समाज में लोहार, बढ़ई, कुम्हार, बुनकर आदि आवश्यक सेवाएँ देते थे।
  2. गाँव की आवश्यक वस्तुएँ स्थानीय स्तर पर ही तैयार होती थीं।
  3. गाँव प्रायः अपने आप में एक आर्थिक इकाई थे।

प्रश्न 7. ‘खालसा भूमि’ से क्या अभिप्राय है?

(CBSE 2009, 2019)
उत्तर:

  1. वह भूमि जो सीधे बादशाह के नियंत्रण में रहती थी।
  2. इस भूमि से होने वाली आय शाही ख़ज़ाने में जाती थी।
  3. इसे किसी जागीरदार या मनसबदार को नहीं दिया जाता था।

प्रश्न 8. ‘आइन-ए-अकबरी’ का महत्व लिखिए।

(CBSE 2010, 2013)
उत्तर:

  1. अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखित यह ग्रंथ अकबर के शासन का प्रशासनिक दस्तावेज़ है।
  2. इसमें राजस्व व्यवस्था, समाज, कृषि और व्यापार की विस्तृत जानकारी है।
  3. यह 16वीं शताब्दी के भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 9. मुग़ल ग्रामीण समाज में ‘पंचायत’ की क्या भूमिका थी?

(CBSE 2014, 2020)
उत्तर:

  1. पंचायत गाँव का प्रशासन और विवाद निपटान करती थी।
  2. वह कर वसूली और ज़िम्मेदारियों के बँटवारे में मदद करती थी।
  3. पंचायत सामाजिक नियम-क़ायदे तय करती थी।

प्रश्न 10. ‘जगीरदारी व्यवस्था’ की विशेषताएँ बताइए।

(CBSE 2011, 2021)
उत्तर:

  1. शाही अधिकारियों और मनसबदारों को वेतन के बदले जागीर दी जाती थी।
  2. जागीर से होने वाली आय से मनसबदार अपनी सेना और खर्च चलाते थे।
  3. जागीर अस्थायी थी और समय-समय पर बदल दी जाती थी।

🟢 8 अंक वाले प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. 16वीं–17वीं शताब्दी में भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

(CBSE 2000, 2009, 2019)
उत्तर:

  1. कृषि मानसून पर निर्भर थी।
  2. सिंचाई के लिए कुएँ, तालाब और नहरें प्रयोग होती थीं।
  3. धान, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, गन्ना, कपास प्रमुख फ़सलें थीं।
  4. किसान मिश्रित खेती करते थे।
  5. भूमि का स्वामित्व अलग-अलग प्रकार का था – जोतर, पहलदार आदि।
  6. ज़मींदार किसानों पर नियंत्रण रखते थे।
  7. कृषि उत्पादन बाज़ार से जुड़ा था।
  8. कर वसूली ने किसानों की स्थिति को कठिन बनाया।

प्रश्न 2. ज़मींदारों की भूमिका और महत्व पर प्रकाश डालिए।

(CBSE 2001, 2010, 2018)
उत्तर:

  1. वे राज्य और किसानों के बीच मध्यस्थ थे।
  2. किसानों से लगान वसूलकर राज्य को सौंपते थे।
  3. उनकी अपनी ज़मीने और पैतृक अधिकार भी होते थे।
  4. स्थानीय राजनीति और समाज में उनका प्रभाव होता था।
  5. वे किसानों की रक्षा भी करते थे।
  6. संकट की घड़ी में वे किसानों को सहायता देते थे।
  7. ग्रामीण समाज में उनके सम्मानजनक पद थे।
  8. राज्य के स्थायित्व में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी।

प्रश्न 3. ‘ज़ब्त प्रणाली’ की व्याख्या कीजिए। इसके लाभ और हानियाँ बताइए।

(CBSE 2002, 2005, 2015)
उत्तर:

  1. भूमि को मापकर कर तय किया जाता था।
  2. औसत उपज और मूल्य को आधार बनाया जाता था।
  3. कर उपज का लगभग 1/3 होता था।
  4. किसान को नकद या अन्न दोनों में कर देना पड़ता था।
  5. लाभ: राज्य को नियमित आय मिलती थी।
  6. लाभ: किसानों को कर दर का पूर्व ज्ञान रहता था।
  7. हानि: कर दर ऊँची होने से किसान बोझिल होते थे।
  8. हानि: अकाल व विपत्ति में भी कर देना पड़ता था।

प्रश्न 4. गाँव में पंचायत की भूमिका का वर्णन कीजिए।

(CBSE 2003, 2014, 2020)
उत्तर:

  1. पंचायत गाँव की सर्वोच्च संस्था थी।
  2. वह सामाजिक विवादों का निपटारा करती थी।
  3. कर संग्रह और बँटवारे में भाग लेती थी।
  4. सामाजिक नियम और परंपराएँ लागू करती थी।
  5. विवाह, उत्तराधिकार और संपत्ति संबंधी मामले सुलझाती थी।
  6. गाँव के शिल्पकारों और सेवकों को भुगतान तय करती थी।
  7. पंचायत गाँव की एकता और अनुशासन बनाए रखती थी।
  8. यह ग्राम समाज की लोकतांत्रिक संस्था का स्वरूप थी।

प्रश्न 5. ‘आइन-ए-अकबरी’ को ऐतिहासिक स्रोत के रूप में महत्व समझाइए।

(CBSE 2004, 2013, 2016)
उत्तर:

  1. अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ अकबरकालीन प्रशासन का दर्पण है।
  2. इसमें राजस्व, सेना, धर्म, समाज और अर्थव्यवस्था की जानकारी है।
  3. इसमें भूगोल, कृषि और उत्पादन का वर्णन है।
  4. भारतीय समाज की संरचना और जातीय संबंधों का चित्रण है।
  5. राज्य और ज़मींदार संबंधों पर प्रकाश डाला गया है।
  6. फ़सल, मूल्य और कर दरें दर्ज हैं।
  7. यह स्रोत समकालीन स्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
  8. आधुनिक इतिहासकारों के लिए यह अत्यंत मूल्यवान है।

प्रश्न 6. अकबर के भूमि-राजस्व प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ बताइए।

उत्तर :

  1. अकबर के काल में भूमि राजस्व राज्य की आय का मुख्य स्रोत था।
  2. राजा टोडरमल ने “दहसाला प्रणाली” (1570s) लागू की।
  3. इस प्रणाली में पैदावार का औसत 10 वर्षों का निकाला जाता था।
  4. नकद वसूली का प्रावधान था ताकि अनाज के उतार–चढ़ाव से किसान प्रभावित न हों।
  5. भूमि की माप “जरीब” (बाँस) से होती थी।
  6. खेती योग्य भूमि को 4 वर्गों में बाँटा गया – पक्का, कच्चा, बारानी और परती।
  7. औसतन 1/3 उपज राज्य को कर के रूप में मिलती थी।
  8. ज़मींदार व अमीले राजस्व वसूली की प्रक्रिया में अहम कड़ी थे।

प्रश्न 7. किसान समुदाय की समस्याएँ एवं कठिनाइयाँ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

  1. किसानों को भूमि पर स्थायी स्वामित्व नहीं था।
  2. अत्यधिक कराधान (राजस्व का 50% तक) से किसान बोझ तले दबे रहते थे।
  3. प्राकृतिक आपदाएँ – सूखा, अकाल, बाढ़ इत्यादि से उत्पादन घटता था।
  4. ऋण लेने पर महाजनों और साहूकारों के शोषण का शिकार होते थे।
  5. ज़मींदारों और अमीलों द्वारा अत्याचार आम थे।
  6. लगान नकद में चुकाना पड़ता था, जो किसानों के लिए कठिन था।
  7. युद्धों और लूट से गाँव का जीवन असुरक्षित रहता था।
  8. इन कठिनाइयों के कारण किसान विद्रोह भी करते थे।

प्रश्न 8. 17वीं शताब्दी के किसान विद्रोहों के प्रमुख कारण लिखिए।

उत्तर :

  1. किसान ग्रामीण समाज का सबसे बड़ा वर्ग थे।
  2. ये ही समाज की आर्थिक गतिविधियों के मूल स्तंभ थे।
  3. अधिकांश किसान छोटे खेतों पर कृषि करते थे।
  4. कर भार और ज़मींदारों के शोषण से उनकी स्थिति दयनीय रहती थी।
  5. कई बार ऋण चुकाने में असमर्थ होकर उन्हें ज़मीन छोड़नी पड़ती थी।
  6. कुछ किसान मज़दूर या sharecropper के रूप में भी काम करते थे।
  7. फिर भी वे आत्मनिर्भरता की भावना बनाए रखते थे।
  8. धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में किसान सक्रिय भूमिका निभाते थे।
  9. कई बार किसान ही विद्रोहों के नेतृत्वकर्ता बने।

प्रश्न 9. ‘दहसाला प्रणाली’ का महत्व स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

  1. मुग़ल प्रशासन की सबसे बड़ी उपलब्धि उसकी सुव्यवस्थित भूमि-राजस्व प्रणाली थी।
  2. अकबर के समय टोडरमल ने “दहसाला पद्धति” लागू की।
  3. भूमि को नाप-जोख कर अलग-अलग वर्गों में बाँटा जाता था।
  4. औसत उपज और मूल्य का हिसाब 10 वर्षों के आधार पर तय किया जाता था।
  5. किसानों से नगद में कर वसूली की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला।
  6. कर की दर आमतौर पर उपज का एक-तिहाई तय की जाती थी।
  7. ज़मींदार और अमलदार कर वसूली की प्रक्रिया की निगरानी करते थे।
  8. कई बार कर की अधिक वसूली से किसानों में असंतोष और विद्रोह की स्थिति भी उत्पन्न हुई।
  9. इस प्रणाली ने मुग़ल प्रशासन को स्थायी वित्तीय आधार दिया।

प्रश्न 10. मनसब्दारी प्रथा और भूमि राजस्व व्यवस्था में क्या संबंध था?

उत्तर :

  1. मुनसबदारों को जागीरें दी जाती थीं।
  2. इन जागीरों से उन्हें वेतन प्राप्त होता था।
  3. जागीरें प्रायः अस्थायी होती थीं।
  4. जागीरदार किसानों से राजस्व वसूलते थे।
  5. इससे जागीरदारों का किसानों पर सीधा प्रभाव पड़ता था।
  6. जागीर प्रणाली राजस्व प्रणाली पर आधारित थी।
  7. भूमि राजस्व ही मुनसबदारों का मुख्य आय स्रोत था।
  8. जागीरदारी और राजस्व प्रणाली ने किसानों की स्थिति को प्रभावित किया।

प्रश्न 11. ‘अकबरनामा’ और ‘आइन-ए-अकबरी’ से हमें राजस्व व्यवस्था की क्या जानकारी मिलती है?

उत्तर :

  1. इन दोनों ग्रंथों को अबुल फज़ल ने लिखा।
  2. अकबरनामा एक ऐतिहासिक वृत्तांत है।
  3. आइन-ए-अकबरी में प्रशासनिक विवरण दिए गए हैं।
  4. इसमें भूमि की वर्गीकरण व्यवस्था वर्णित है।
  5. कर निर्धारण की दहसाला प्रणाली का विवरण है।
  6. नकद वसूली, भूमि माप, और फसलों की कीमतों का वर्णन है।
  7. इसमें विभिन्न क्षेत्रों की राजस्व दरें दी गई हैं।
  8. ये ग्रंथ तत्कालीन समाज और कृषि की स्थिति को दर्शाते हैं।

प्रश्न 12. गाँव मुगल अर्थव्यवस्था की रीढ़ क्यों कहलाता था?

उत्तर :

  1. अधिकांश जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी।
  2. कृषि उत्पादन ही राज्य की आय का मुख्य स्रोत था।
  3. गाँव में अनाज, कपास, गन्ना आदि की खेती होती थी।
  4. ग्रामीण कुटीर उद्योग भी सक्रिय थे।
  5. गाँव आत्मनिर्भर आर्थिक इकाई था।
  6. किसान, कारीगर और पशुपालक मिलकर उत्पादन करते थे।
  7. गाँव से ही व्यापारिक गतिविधियों को सामग्री मिलती थी।
  8. इसीलिए गाँव को अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा गया।

प्रश्न 13. साहूकार और महाजन किसान जीवन में किस प्रकार महत्वपूर्ण थे?

उत्तर :

  1. किसान नकदी कर चुकाने के लिए ऋण लेते थे।
  2. साहूकार–महाजन गाँवों में उपलब्ध रहते थे।
  3. वे बीज, खाद, बैल और उपकरण खरीदने हेतु ऋण देते थे।
  4. ऋण पर ऊँचा ब्याज वसूलते थे।
  5. ऋण न चुका पाने पर किसान भूमि खो देते थे।
  6. कभी-कभी किसान साहूकारों के अधीन बंधुआ श्रमिक बन जाते थे।
  7. किसान विद्रोहों में साहूकार भी लक्ष्य बनते थे।
  8. उनके बिना किसान कृषि कार्य जारी नहीं रख पाते थे।

प्रश्न 14. ‘किसान और राज्य’ के संबंधों का विवेचन कीजिए।

उत्तर :

  1. किसान भूमि पर काम करते थे लेकिन स्वामी राज्य था।
  2. किसान को उपज का बड़ा हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था।
  3. राज्य का अस्तित्व किसानों की उपज पर निर्भर था।
  4. राज्य किसानों को सुरक्षा और कानून व्यवस्था देता था।
  5. परंतु शोषण और अत्यधिक कर ने संबंध तनावपूर्ण बना दिए।
  6. किसान विद्रोह भी इस तनाव का परिणाम थे।
  7. फिर भी दोनों एक–दूसरे पर निर्भर थे।
  8. यह संबंध उत्पादन और शासन का आधार था।

प्रश्न 15. मुगलकालीन ग्रामीण समाज की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर :

  1. अधिकांश लोग गाँवों में रहते थे।
  2. मुख्य व्यवसाय कृषि था।
  3. गाँवों में जाति आधारित पेशागत विभाजन था।
  4. सामुदायिक जीवन और सामूहिकता की भावना थी।
  5. किसान, कारीगर, पशुपालक सभी गाँव में रहते थे।
  6. ज़मींदार और अमीले गाँवों पर नियंत्रण रखते थे।
  7. धार्मिक और सामाजिक संस्थाएँ गाँव के केंद्र थे।
  8. गाँव आत्मनिर्भर और परंपरागत जीवन जीते थे।

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