अध्याय 6 – भक्ति–सूफ़ी परंपराएँ: धार्मिक विश्वासों और भक्ति साहित्य में परिवर्तन के संपूर्ण नोटस

By gurudev

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कक्षा 12 इतिहास (Themes in Indian History – Part I)


🔷 भूमिका

  • आठवीं से अठारहवीं शताब्दी के बीच भारत में धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं में बड़े बदलाव हुए।
  • भक्ति और सूफ़ी परंपराएँ लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की अभिव्यक्ति बनकर उभरीं और परंपरागत ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती दी।
  • इन आंदोलनों ने व्यक्तिगत भक्ति, सामाजिक समानता, और जातिवाद के विरोध पर ज़ोर दिया।

🧭 खंड I: धार्मिक विश्वासों और परंपराओं की पृष्ठभूमि

● भक्ति और सूफ़ी से पहले की धार्मिक स्थिति

  • भारत में कई धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित थीं: वैदिक, पुराणिक, बौद्ध, जैन, आदिवासी परंपराएँ, ग्राम देवता, पूर्वज पूजा आदि।
  • प्रमुख देवता: विष्णु, शिव, दुर्गा – पूरे भारत में पूजे जाते थे।
  • स्थानीय देवताओं की भी व्यापक मान्यता थी, जिन्हें धीरे-धीरे संस्कृतिकरण के माध्यम से ब्राह्मणिक परंपरा में शामिल किया गया।

● एक परम ईश्वर की धारणा

  • ईस्वी सन् की शुरुआत के बाद एक परमात्मा या व्यक्तिगत ईश्वर की अवधारणा लोकप्रिय हुई।
  • दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ उभरीं:
    1. सगुण भक्ति – साकार रूप में ईश्वर की भक्ति (राम, कृष्ण, शिव आदि)
    2. निर्गुण भक्ति – निराकार ईश्वर की भक्ति

● तांत्रिक परंपराएँ

  • तंत्र परंपराओं में मंत्र, साधना, और स्त्री शक्ति (शक्ति) की पूजा पर ज़ोर था।
  • यह परंपराएँ हिन्दू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम संतों में भी देखी गईं।
  • अक्सर इन्हें गुप्त और रहस्यमयी समझा जाता था।

🔷 खंड II: कर्नाटक में वीरशैव परंपरा

● लिंगायत या वीरशैव आंदोलन

  • 12वीं शताब्दी में कर्नाटक में बसवन्ना द्वारा शुरू किया गया आंदोलन।
  • उन्होंने जाति प्रथा, ब्राह्मण वर्चस्व, और वेदों को खारिज किया।
  • शिव को लिंग रूप में पूजा जाता था।
  • सरल एकेश्वरवाद, आंतरिक पवित्रता, और मंदिर पूजा का विरोध इनकी विशेषताएँ थीं।
  • विधवा विवाह, स्त्री समानता, और कन्या शिक्षा का समर्थन किया।
  • इनकी रचनाएँ वचन (Vachanas) कहलाती हैं, जो कन्नड़ भाषा में थीं।

🔷 खंड III: महाराष्ट्र के संत

  • प्रमुख संत: नामदेव, एकनाथ, तुकाराम, जनाबाई, सखुबाई
  • मुख्य बिंदु:
    • विठोबा (विट्ठल) के प्रति भक्ति (विष्णु का रूप)
    • जाति व्यवस्था का विरोध, समानता का प्रचार
    • मंदिरवाद और कर्मकांड का विरोध
  • इनकी रचनाएँ अभंग (Abhang) कहलाती हैं और ये मराठी में थीं।

🔷 खंड IV: नाथपंथी, सिद्ध और योगी

  • इन्होंने कर्मकांड और पुजारियों के वर्चस्व का विरोध किया।
  • सन्यास, ध्यान, और योगिक साधना को प्राथमिकता दी।
  • शरीर को आध्यात्मिक अनुभव का माध्यम माना।
  • इनकी रचनाएँ स्थानीय भाषाओं में थीं और आम लोगों तक पहुँचीं।

🔷 खंड V: उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन

● मुख्य विशेषताएँ

  • एक निराकार ईश्वर में विश्वास
  • जाति भेद का विरोध
  • बाह्य आडंबर, मंदिर, वेद और मूर्ति पूजा का विरोध
  • प्रेम, भक्ति, और समर्पण पर बल

● कबीर (15वीं शताब्दी)

  • निर्गुण ईश्वर में विश्वास
  • उनकी भाषा साधारण हिंदी/अवधी/खड़ी बोली थी
  • रचनाएँ: साखी और पद
  • हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं की आलोचना
  • मूर्ति पूजा, तीर्थ, और रोज़े का विरोध
  • रचनाएँ: गुरु ग्रंथ साहिब, कबीर बीजक, कबीर ग्रंथावली में शामिल

● गुरु नानक (1469–1539)

  • सिख धर्म के संस्थापक
  • पंजाबी में शिक्षाएँ दीं
  • संगत (समूह) और लंगर (सामूहिक भोजन) की परंपरा शुरू की
  • जाति और धार्मिक भेदभाव का विरोध
  • शिक्षाओं का संकलन: गुरु ग्रंथ साहिब

🔷 खंड VI: धार्मिक समुदायों के बीच संबंध

● परस्पर संवाद और संपर्क

  • धर्मों में बातचीत, साझी परंपराएँ और कभी-कभी टकराव भी।
  • साझे तीर्थ, त्योहार, भजन और कविताएँ आम रहीं।
  • उदाहरण: अकबर का सुलह-ए-कुल, जहाँगीर की संतों के प्रति श्रद्धा

🔷 खंड VII: सूफ़ी परंपराओं का विकास

● सूफ़ीवाद क्या है?

  • इस्लामी रहस्यवाद जिसमें आंतरिक शुद्धता, ईश्वर के प्रति प्रेम, त्याग, और समता प्रमुख हैं।
  • भारत में 8वीं शताब्दी से सूफ़ी मत का प्रसार हुआ।

● प्रमुख सूफ़ी सिलसिले (संप्रदाय)

  • चिश्ती, कादिरी, सुहरावर्दी, नक्शबंदी
  • इनकी शिक्षाएँ गुरु-शिष्य परंपरा में चलती थीं

● चिश्ती सिलसिला

  • भारत में इसकी शुरुआत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) ने की।
  • अन्य संत: निज़ामुद्दीन औलिया, बाबा फरीद, नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
  • परंपराएँ:
    • समा (धार्मिक संगीत)
    • लंगर (भंडारा)
    • समानता और करुणा
    • सभी धर्मों के लोगों का स्वागत

● सूफ़ी खानकाह

  • सूफ़ी संतों के निवास स्थल जहाँ शिष्य भी रहते थे
  • चर्चा, साधना, सेवा, और भंडारे का केंद्र

● सूफ़ी साहित्य

  • मलफ़ूज़ात (वाणी), मकतूबात (पत्र), तज़किरा (जीवनियाँ)
  • फारसी और स्थानीय भाषाओं में कविताएँ और भजन
  • संतों की दरगाहें आस्था के केंद्र बन गईं

🔷 खंड VIII: नई भक्ति धाराएँ और मंदिर परंपराएँ

● मंदिर और धार्मिक संस्थाएँ

  • भक्ति और सूफ़ी आंदोलन के विरोध के बावजूद मंदिरों का महत्व बना रहा
  • राजा मंदिरों का संरक्षण करते थे
  • मंदिर केवल पूजा के नहीं बल्कि:
    • सामाजिक आयोजन,
    • शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों,
    • संगीत और नृत्य,
    • अर्थव्यवस्था के भी केंद्र थे

● स्त्रियाँ और भक्ति आंदोलन

  • मीराबाई, अंडाल, लल्लेश्वरी, जनाबाई जैसी स्त्रियाँ इस आंदोलन की प्रमुख थीं।
  • मीराबाई (16वीं शताब्दी):
    • कृष्ण भक्ति की प्रतीक
    • राजपरिवार की परंपराओं को ठुकराया
    • राजस्थानी और ब्रज भाषा में भजन लिखे
    • प्रेम और समर्पण की प्रतीक

🔷 निष्कर्ष

  • भक्ति और सूफ़ी आंदोलनों ने धार्मिक संकीर्णताओं को चुनौती दी।
  • इनका ज़ोर था:
    • प्रेम,
    • समानता,
    • आध्यात्मिक स्वतंत्रता,
    • जातिवाद और कर्मकांड का विरोध
  • इनकी साझा विरासत आज भी भारतीय समाज को प्रभावित करती है।

✅ अध्ययन फल (Learning Outcomes)

  • छात्र मध्यकालीन भारत की धार्मिक परंपराओं को समझ पाते हैं।
  • भक्ति और सूफ़ी परंपराओं की विशेषताओं को स्पष्ट रूप से पहचानते हैं।
  • इन आंदोलनों के सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान की सराहना करते हैं।

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