3 अंकों और 8 अंकों के प्रश्न
NCERT कक्षा 12 के पाठ 6 के लघु और दीर्घ उत्तर वाले प्रश्न
📘 3 अंकों के प्रश्न (संक्षिप्त उत्तर प्रश्न)
शब्द सीमा: लगभग 80 शब्द)
Q1. कबीर की मुख्य शिक्षाएँ क्या थीं?
[CBSE 2008, 2015]

उत्तर:
- कबीर एक निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे और मूर्ति पूजा का विरोध करते थे।
- उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों की कट्टरता की आलोचना की; जातिवाद, मंदिरों और मस्जिदों को खारिज किया।
- उन्होंने सरल भाषा में दोहों के माध्यम से मानवता और ईश्वर की एकता का प्रचार किया।
Q2. सूफ़ी संतों ने अपने संदेश कैसे फैलाए?
[CBSE 2011, 2019]

उत्तर:
- उन्होंने खानकाहों में सत्संग, भजन, कव्वाली, और आध्यात्मिक चर्चाओं के माध्यम से प्रचार किया।
- सूफ़ीवाद ने प्रेम, सेवा, और त्याग को प्राथमिकता दी और बाहरी आडंबर को अस्वीकार किया।
- मलफ़ूज़ात (वाणी), मकतूबात (पत्र) और शिष्यों की यात्राओं से उनके विचार प्रसारित हुए।
Q3. वीरशैव परंपरा की तीन विशेषताएँ बताइए।
[CBSE 2014]

उत्तर:
- 12वीं शताब्दी में बसवन्ना द्वारा शुरू की गई इस परंपरा ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवाद का विरोध किया।
- ये लोग लिंग रूप में शिव की पूजा करते थे और व्यक्तिगत भक्ति में विश्वास करते थे।
- इन्होंने मंदिर पूजा का विरोध, स्त्री समानता और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
Q4. चिश्ती सूफ़ी संतों की भूमिका क्या थी?
[CBSE 2009, 2017]
उत्तर:
- उन्होंने खानकाह स्थापित किए, जहाँ आध्यात्मिक शिक्षा, सेवा और पूजा होती थी।
- इन संतों ने सादगी, भक्ति, गरीबों की सेवा और भोजन बाँटना (लंगर) जैसी परंपराओं को अपनाया।
- ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया जैसे संतों को बहुत श्रद्धा मिली।
Q5. महाराष्ट्र के भक्ति संतों की तीन विशेषताएँ लिखिए।
[CBSE 2016, 2021]

उत्तर:
- इन्होंने मराठी भाषा में अभंग (भक्ति गीत) लिखे जो आम लोगों में लोकप्रिय हुए।
- इन्होंने विठोबा की भक्ति की और जात-पात तथा ब्राह्मणवाद का विरोध किया।
- तुकाराम, नामदेव, जनाबाई जैसे संतों ने सामूहिक पूजा और नैतिकता का संदेश दिया।
Q6. भक्ति काल में मंदिर क्यों महत्त्वपूर्ण थे?
[CBSE 2013]
उत्तर:
- मंदिर सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र थे।
- यहाँ संगीत, नृत्य, बहस और धार्मिक आयोजनों का आयोजन होता था।
- शासकों ने जगन्नाथ (उड़ीसा), मीनाक्षी (मदुरै) जैसे मंदिरों का संरक्षण किया।
Q7. गुरु नानक की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थीं?
[CBSE 2005, 2020]

उत्तर:
- उन्होंने एक परम ईश्वर के अस्तित्व पर बल दिया जो सभी धर्मों से ऊपर है।
- जातिवाद, मूर्ति पूजा और कर्मकांड का विरोध किया।
- संगत (सामूहिक प्रार्थना) और लंगर (सामूहिक भोजन) की शुरुआत की।
8 अंकों के प्रश्न (दीर्घ उत्तर प्रश्न)
शब्द सीमा: लगभग 250–300 शब्द)
Q1. भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
[CBSE 2004, 2008, 2018]
उत्तर:
- व्यक्तिगत ईश्वर की भक्ति पर बल (सगुण और निर्गुण दोनों)।
- जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानता का विरोध।
- कर्मकांड, वेद और ब्राह्मण वर्चस्व का विरोध।
- स्थानीय भाषाओं में भक्ति साहित्य की रचना।
- प्रमुख संत: कबीर, मीराबाई, नानक, नामदेव आदि।
- स्त्रियों और शूद्रों के लिए आध्यात्मिक मार्ग खुला।
- भक्ति गीतों और कविताओं के माध्यम से सीधा संवाद।
- उत्तर और दक्षिण भारत में भक्ति के भिन्न रूप विकसित हुए।
Q2. सूफ़ी संतों का भारतीय समाज में योगदान समझाइए।
[CBSE 2007, 2010, 2019]
उत्तर:
- प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारे का प्रचार किया।
- खानकाहों के माध्यम से आध्यात्मिक व सामाजिक सेवा।
- बाह्य कर्मकांडों का विरोध और आंतरिक पवित्रता पर बल।
- कव्वाली और संगीत के माध्यम से भक्ति का प्रदर्शन।
- मलफ़ूज़ात, मकतूबात जैसी रचनाएँ।
- सभी धर्मों के लोगों को आकर्षित किया; ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती जैसे संत प्रसिद्ध हुए।
- भारतीय और इस्लामी परंपराओं का संगम स्थापित किया।
- गरीबों की सेवा और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
Q3. भक्ति आंदोलन में स्त्रियों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
[CBSE 2012, 2022]

उत्तर:
- मीराबाई, अंडाल, जनाबाई, लल्लेश्वरी जैसी स्त्रियाँ प्रमुख थीं।
- इन्होंने पुरुष वर्चस्व और जाति भेद का विरोध किया।
- अपनी रचनाओं में ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति की।
- मीराबाई ने राजसी जीवन त्यागकर कृष्ण भक्ति को अपनाया।
- अंडाल ने विष्णु के प्रति प्रेम में कविताएँ लिखीं।
- जनाबाई ने घरेलू कार्यों को भक्ति का माध्यम बनाया।
- स्त्रियों ने वैकल्पिक आध्यात्मिक मार्ग दिखाया।
- कई बाधाओं के बावजूद, आध्यात्मिक नेतृत्व प्राप्त किया।
Q4. सगुण और निर्गुण भक्ति परंपरा में क्या अंतर है?
[CBSE 2006, 2015, 2020]
उत्तर:
- सगुण भक्ति में मूर्तिरूप ईश्वर की पूजा; निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर का ध्यान।
- सगुण परंपरा मंदिरों और कर्मकांड पर आधारित, निर्गुण ने इनका विरोध किया।
- सगुण: राम, कृष्ण, विष्णु आदि; निर्गुण: कबीर, नानक।
- सगुण में पुराणिक कथाएँ, निर्गुण में सरल भाषा और प्रतीक।
- सगुण संत: तुलसीदास, मीराबाई; निर्गुण संत: कबीर, दादू।
- निर्गुण भक्ति आंतरिक अनुभूति पर बल देती है।
- दोनों का उद्देश्य: ईश्वर तक सीधा पहुँच।
- दोनों ने धार्मिक सुधार और सामाजिक बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया।
Q5. 8वीं से 18वीं शताब्दी के बीच धार्मिक विचारों और परंपराओं में आए परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
[NCERT आधारित, बार-बार पूछा गया]
उत्तर:
- तांत्रिक परंपराओं, भक्ति आंदोलन, और सूफ़ीवाद का उदय।
- व्यक्तिगत ईश्वर की पूजा केंद्र में आई (राम, शिव, अल्लाह)।
- वीरशैव और नाथपंथी आंदोलनों ने ब्राह्मणवाद को चुनौती दी।
- क्षेत्रीय देवताओं और मंदिर संस्कृति का विकास।
- स्थानीय भाषाओं में भक्ति साहित्य की वृद्धि।
- आध्यात्मिक अनुभव, कर्मकांड से ऊपर समझा गया।
- धार्मिक समुदायों के बीच संवाद और समन्वय।
- प्रेम, सेवा, समानता और पवित्रता जैसे साझे मूल्यों पर ज़ोर।
Q6. गुरु नानक की शिक्षाएँ आज के समाज में कितनी प्रासंगिक हैं?
[CBSE 2009, 2014, 2021, 2023]

उत्तर:
- एक ईश्वर का विचार – आज धार्मिक तनावों में यह धार्मिक एकता और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।
- समानता और भाईचारा – जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आज भी आवश्यक।
- कर्मकांडों का विरोध – अंधविश्वास और कट्टरता से लड़ने में मददगार।
- ईमानदार जीवन (किरत करो) – भ्रष्टाचार के विरुद्ध नैतिक मूल्य।
- मानव सेवा (सेवा और वंड छको) – आज के समाज में करुणा और समानता के लिए प्रेरक।
- सामुदायिक भावना (संगत और लंगर) – धार्मिक सद्भाव और सामाजिक समरसता को बढ़ावा।
- शांति और अहिंसा – हिंसा और घृणा के दौर में अत्यंत महत्वपूर्ण।
- शिक्षा और जागरूकता – नैतिक शिक्षा और सामाजिक चेतना के लिए आज भी मार्गदर्शक।