यात्रियों के नजरिए NCERT Chapter 5 के संपूर्ण नोटस

By gurudev

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यात्रियों के नजरिए पाठ-5 के संपूर्ण नोटस

(i) कार्य की तलाश है

(ii) आपदाओं से बचाव से

(iii) साहस की भावना से प्रेरित

(iv) व्यापारी, सैनिक, पुरोहित और तीर्थयात्री के रूप में

(i) अल-बिरूनी की जन्म व शिक्षा: इनका जन्म 973 ई० में उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म में हुआ जो शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र था। वह सीरियाई फारसी, हिब्रु तथा संस्कृत का ज्ञाता था उसने प्लेटो व यूनानी दार्शनिकों पर अध्ययन किया था |

☆1017 में गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी ने जब ख्वारिज्म पर हमला किया तो अल-बरुनी को बंदी बनाकर गजनी लाया गया| परन्तु शीघ्र ही वह अपनी योग्यता के कारण सुल्तान का पसंदीदा बन गया I

70 वर्ष की आयु में (मृत्यु तक) यहीं रहा। उसने पतंजलि की व्याकरण का अरबी में अनुवाद किया| किताबू-उल- हिन्द (अल- बरुनी द्वारा लिखित पुस्तक) अरबी भाषा मे लिखित ग्रन्थ है | यह 80 अध्यायों में बंटा है| जिसमें धर्म, दर्शन, त्यौहार, खगोल- विज्ञान, रीति-रीवाज, मर्तिकला जैसे विषयों को लिया गया है|

☆प्रत्येक अध्याय विशिष्ट शैली में है जो प्रश्न से शुरू होता है फिर संस्कृत परम्पराओं पर आधारित वर्णन व अन्त में अन्य संस्कृतियों से तुलना है।

☆ लेखन -शैली के विषय में उसका दृष्टि‌कोण आलोचनात्मक था |

☆ हिन्दू शब्द की उत्पति: 5वी-6वीं शताब्दी में सिन्धु नदी के नाम पर क्योंकि अरबी लोग ‘स’ को ‘ह’ उच्चारित करते थे अतः उन्होंने सिन्धु नदी के क्षेत्र को ‘अल-हिन्द’ और यहाँ के लोगों को ‘हिन्दू’ कहा |

इब्न बतता का का जीवन व यात्रा : इनका जन्म तैजियर के सबसे सम्मानित व शरिया ज्ञाता अरबी परिवार में हुआ। उसने रिहला नाम की पुस्तक लिखी| उन्होंने कम आयु मे ही साहित्य व शास्त्ररुढ की शिक्षा हासिल की |

☆उसे यात्राओं का बहुत शौक था। उसे घुमक्कड़ हठी यात्री कहते हैं।

☆1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान से पहले वह मक्का, सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान व पूर्वी अफ्रीका की यात्रा कर चुका था।

☆ इब्न बतूता 1333 में स्थल मार्ग से सिंध (भारत) पहुंचा।

☆ अपनी यात्रा की तीस वर्ष बाद 1354 में घर पहुंचा।

☆ मुहम्मद-बिन-तुगलक व इब्नबतूता (इब्नबतूता भारत में)

☆ 1333 में वह सिंध पहुंचा जहां उसने मुहम्मद तुगलक को कला व साहित्य के संरक्षक के रूप में सुनकर दिल्ली आने के लिए प्रस्थान किया।

☆ वह मुल्तान व उच्छ के रास्ते दिल्ली पहुंचा।

☆सुल्तान उसकी विद्वता से प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काज़ी नियुक्त किया।

☆सुल्तान ने बहकावे में आकर उसे जेल में डाल दिया लेकिन गलतफहमी दूर होने पर फिर से काज़ी बना दिया।

☆1342 में मंगोल शासक के पास दूत बनाकर भेजा और चीन जाने का आदेश दिया।

☆ वह मालाबार के रास्ते माल- द्वीव पहुँचा जहाँ वह 18 महीने काज़ी रहने के बाद श्री लंका गया।

☆चीन जाने से पहले वह मालदीप, बंगाल, असम व सुमात्रा गया। सुमात्रा से चीनी बन्दरगाह जायतन (क्वावसू) गया फिर बीजिंग तक गया।

☆ 1347 में वापस घर जाने का फैसला किया।

☆उसके यात्रा वृतान्त की तुलना मार्को पोलो से की जाती है, जिसने वेनिस से चलकर चीन व भारत की यात्रा की थी।

० इब्नबतूता के अनुसार मुल्तान से दिल्ली पहुंचने में, दौलताबाद से दिल्ली जाने मे 40 दिन व ग्वालियर से दिल्ली आने में 10 दिन लगते हैं।

० इब्नबतूता के अनुसार यात्रा करना कठिन था क्योंकि डाकुओं के आक्रमण (जिसका शिकार वह कई बार हुआ) और लूटपाट होते रहते थे| मुल्तान से दिल्ली की यात्रा में उसके कारवां पर हमला हुआ और मुश्किल से उसकी जान बची।

अब्दुर रज्जाक समरकन्दी → इसने 1450 के दशक में दक्षिण भारत की यात्रा की थी।

महमूद वली बल्खी → 1620 के दशक में व्यापक यात्राएँ की।

शेख अली हाजिन → 1740 के दशक में उत्तर भारत आया और संन्यासी बन गया | परन्तु होजिन भारत से निराश हुआ और वो भारत से घृणा करने लगा। इनसे महमूद वली प्रभावित हुआ।

क्रिस्टोफर रॉबर्टो ने भारतीय ग्रंथों का यूरोपीय भाषा में अनुवाद किया।

दुआर्टे बरबोसा → दक्षिण भारत में व्यापार व समाज का विस्तृत वर्णन किया। इतालवी यात्री जो भारत में ही बस गया।

फ्रांस्वा बर्नियर: एक विशिष्ट चिकित्सक फ्रांस्वा बर्नियर ने भारत की 6 बार यात्रा की। उसने भारत की तुलना ईरान व रोमन साम्राज्य से की। वह एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शनिक व इतिहासकार था। 1656-1668 तक मुगल दरबार में रहा। पहले वह शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह का चिकित्सक बना इसके बाद एक अर्मेनियाई दानिशमन्द खान के साथ बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में रहा।

० बर्नियर द्वारा पूर्व और पश्चिम की तुलना बर्नियर ने जो भी भारत में देखा उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से की और भारतीय स्थिति को दयनीय बताया। उसने अपने यात्रा वृतान्त को फ्रांस के शासक लुई XIV को दिया। उसके कई महत्वपूर्ण अधिकारियों को पत्र लिखे जो प्रकाशित हुए और बर्नियर को प्रसिद्धि मिली। 1670-71 में उसके यात्रा वृतान्त प्रकाशित हुए। 1670-1725 में आठ बार व 1684 में चीन में पाँच बार प्रकाशित हुए।

० अलबरूनी को संस्कृतवादी परम्परा को समझने में बाधाएँ:

० संस्कृत अरबी व फारसी से भिन्न थी, इसे अनुवादित करना मुश्किल था।

० उसका दूसरा अवरोध धार्मिक अवस्था व प्रथा में भिन्नता थी।

० उसका तीसरा अवरोध अभिमान था क्योंकि भारतीय किसी से अपना ज्ञान बांटना नहीं चाहते थे।

० उसने भारतीय समाज को समझने के लिए वेद, पुराण, भगवद्गीता व पतंजलि की कृतियों का सहारा लिया। भारतीय अपने आपको श्रेष्ठ समझते थे।

जाति व्यवस्‌था का गर्व : अल बरुनी ने कहा भारतीयों को अपनी जाति पर गर्व हैं। उसने वर्ग व्यवस्था का दर्शन भी किया

* ब्राह्म‌णों का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ अत वे श्रेष्ठ है। जो ज्ञान का प्रतीक हैं.

*क्षत्रियों का जन्म ब्रह्मा की भुजाओं से हुआ अतः वो ब्राहमणों के नीचे हैं व ताकत का प्रतीक है

* वैश्य: इनकी उत्पति ब्रह्मा की उदर से हुई है शुद्र की उत्पति ब्रह्मा के चरणों से हुई।

० उसके अनुसार एक और जाति थी जिन्हें अंत्यज कहा जाता था , जो आबादी से दूर शहरों से बाहर रहते थे व अस्पृश्य थे आर्थिक तन्त्र में शामिल थे।

० नारियल : यह मानव के सिर जैसा लगता है|इब्न-बतूता द्वारा नारियल पेड़ वर्णन मानव सिर से किया गया | उसको यह हुबहु खजुर जैसा लगा| जिसका फल है गिरीदार होता है| जो काष्ट्फल है|

० यह मानव सिर की तरह है मानो इसकी भी दो आँखे व एक मुख व अन्दर का भाग मस्तिष्क है। इसके रेशे बालों जैसे हैं। →

० इनके रेशों से जहाज सिलते है और बर्तनों के लिए रस्सी बनाते हैं।

० पान: पान एक बेल की तरह है जिसका कोई फल नहीं होता। इसे पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है|खाने से पहले सुपारी लेकर तोड़ी जाती है१ . मुहँ में चवाया जाता है इसके बाद पान की पतियों को चवाया जाता है।

० भारतीय शहरों में उन लोगों के लिए व्यापक अवसर हैं जिनके पास इच्छा, साधन व कौशल हैं।

० ये घनी आबादी वाले समृद्ध शहर है।

० अधिकांश शहरों में भीड़ भाड़ वाली सड़कें व चमक-दमक वाले रंगीन बाजार है।

० इन दीवारों की खिड़कियाँ बाहर की ओर खुलती थी।

० इन दीवारों के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद, व घेराबन्दी के मशीनों के संग्रह थे।

० यह भारत का सबसे बड़ा शहर है जिसके २४ दरवाजे है।

० बदायूंनी दरवाजा सबसे विशाल है।

० मांडवी दरवाजे के भीतर अनाज मंडी है।

० गुल दरवाजे की बगल में फूलों का बगीचा है।

० इस शहर में बेहतरीन कब्रगाह है जिसकी कब्रों पर गुंबद बने है।

० कब्रगाह में चमेली व जंगली गुलाब उगाए जाते है।

० यहाँ पुरुष व महिला गायकों का एक बाजार है जिसे ताराबाद कहते हैं। यह सबसे विशाल व सुन्दर शहरों में से एक है।

० दुकानों को कालीनों से सजाया गया है।

० दुकान के मध्य झूले पर गायिका बैठती है।

० प्रत्येक गुरुवार की सुबह विशाल गुंबद में गायिकाएं सामुहिक गाना गाती है।

० बाजार सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र थे।

० प्रत्येक बाजार में एक मन्दिर व एक मस्जिद होता था।

० नर्तकों, संगीतकारों व गायकों के प्रदर्शन का स्थान होता था।

० भारतीय जमीन उपजाऊ होने के कारण साल में दो फसलें उगाते थे।

० व्यापार मध्य व पूर्व एशिया तक फैला था।

० महीन मलमल, रेशम, जरी, साटन की विदेशों में भारी मांग थी।

० इब्नबतूता डाक प्रणाली की कुशलता देखकर चकित था।

० दिल्ली से सिंध सूचना मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थी।

० भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी।

① अश्व डाक व्यवस्था – इसे उलूक कहा जाता था। यह हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती थी।

② पैदल डाक व्यवस्था – पैदल डाक व्यवस्था जिसमें प्रति मील तीन अवस्थान होते थे। जब संदेशवाहक पत्र वाहक जाता तो दूसरे हाथ में घंटियों वाली छड़ लेता था जिसकी आवाज सुनकर अगला संदेशवाहक तैयार हो जाता था।

अब्दुल रज्जाक का 1440 के दशक में लिखा गया यात्रा वृतान्त संवेगों व अपबोधनों का रोचक मिश्रण है। उसने कालीकट बन्दरगाह पर बसे लोगों को ‘एक विचित्र’ देश बताया। परन्तु मंगलौर के एक मंदिर की प्रशंसा की।

पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने 17वीं सदी की शुरुआत में भारत की यात्रा की। कृषकों की दशा के लिए राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है “कृषकों का इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से मिलती है।”

बर्नियर ने अपने ग्रन्थ “ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर” में भूरोप को भारत से श्रेष्ठ बताया है।

भूस्वामीत्व के बारे में बर्नियर ने अपने विचार दिए हैं जो इस प्रकार हैं –

० भारत में निजी भूस्वामीत्व का अभाव है जो राज्य व किसान दोनों के लिए हानिकारक है।

० मुगल सम्राट सारी भूमि का स्वामी है जो इसे अमीरों के बीच बांटता है।

० भूस्वामीत्व की कमी के कारण किसान अपने बच्चों को नहीं दे सकता अतः वो उत्पादन बढ़ाने की नहीं सोचते।

० इसकी कमी ने ऐसे भू धारक वर्ग की उत्पत्ति को रोका है जो भूमि सुधार व उत्पादन में रुचि रखता हो।

० इस प्रथा के कारण भारत में मध्यम स्थिति के लोग नहीं हैं।

० उसके अनुसार भारतीय राजा भिखारियों व क्रूर लोगों का राजा है।

० यहां के शहर दूषित है ② यहां के खेत झाडीदार व घातक दलदल से भरे हैं।

हिन्दुस्तान के विशाल अंचल में केवल रेतीली भूमि या बंजर पर्वत है अतः पैदावार कम होती है। → श्रमिक गर्वनरों के बुरे व्यवहार के कारण मर जाते है → लालची स्वामी गरीब किसानो को जीवन- निर्वाह के साधनों से वंचित कर देते हैं। → किसान कर्ज के चुंगल में फंसे है। ← * बर्नियर ने यूरोपीय शासकों को चेतावनी दी है कि यदि वो मुगल ढांचे का अनुसरण करेंगे तो वे जल्द ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानो, भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जाएंगे। उनके शहरों की हवा दूषित हो जाएगी

अबुल फजल ने भूमि राजस्व को “राजत्व का पारिश्रमिक बताया है। अबुल फजल अकबर का दरबारी इतिहासकार था विदेशिी यात्रियों ने मुगल सम्राट को सारी भूमि का मालिक बताया है जो कि सम्पूर्ण सत्य नहीं है → अबुल के अनुसार भूराजस्व राजत्व का पारिश्रमिक है क्यों → राजा सम्पूर्ण राज्य के लोगों की हर तरह से रक्षा करता है। इस सुरक्षा के लिए बहुत खर्च होता है अतः बदले मे सम्राट अपना पारिश्रमिक यानी लगान लेता है।

०शिल्पकारों की दशा भी दमनीय थी। वो अपने उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश नहीं करते थे क्योंकि मुनाफे का अधिग्रहण राज्य द्वारा किया जाता था। इसलिए उत्पादन पतनोन्मुख था|

० साथ में वह यह भी मानता था कि पूरे विश्व से सोना-चाँदी भारत आता है क्योंकि उत्पादों का निर्यात सोने- चांदी के बदले में होता था। समृद्ध व्यापारी वर्ग भी था जो लम्बी दूरी का व्यापार करता था |

० कई स्थानो पर बड़े कुस शिल्पकारों की कार्यशाला थे।

० वे सुबह से शाम करते थे, उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं था।

० बर्नियर भारतीय शहरों को शिविर कहता था

० 17वीं शताब्दी में जनसंख्या के 15% लोग शहरों में रहते थे

. बर्नियर ने भारतीय शहरों को शिविर कहा क्योंकि ये शहर अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे। जब राजकीय केंद्र जाते थे तो इसका पतन हो जाता। श्री जो जाति व व्यवसायिक माध्यमों से जुड़े थे। व्यापारी वर्ग बंधुत्व के संबंधों से जुड़ा था।

→ पश्चिमी में ऐसे समूहों को महाजन व उनके मुखिया को सेठ कहते थे। → अहमदाबाद में इन्हें नगर सेठ कहा जाता था।

अन्य सभी सामाजिक वर्गों में चिकित्सक, अध्यापक, अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक शामिल थे।

(i) बाजारों में दासों को खरीदा-बेचा जाता था।

(ii) उसने मुहम्मद तुगलक को घोड़े, ऊँट व दास भेंट किए।

(iii) मुहम्मद तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक से प्रभावित होकर एक लाख टका व दो सौ दास भेंट किए। कार्य:

कुछ दास गायन व नृत्य का काम करते थे।

→ दासों को सामान्यतः घरेलू कामों में लगाया जाता था।

→ सुल्तान अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को नियुक्त किया करते थे।

(i) कुछ महिलाएं तो प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थी।

(ii) जो सती नहीं होना चाहती थी उन्हें लकड़ियों से बांधकर जलाया जाता था।

(iii) छोटी उम्र की विधवाओं को जबरदस्ती सती किया जाता था।

महिलाओं का जीवनदासी महिलाओं को घरेलू कामों व जासूसी कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता था।विधवा महिलाओं को जबरदस्ती सती किया जाता था।सामान्यतः महिलाएं घरेलू कार्यों के साथ उत्पादन कामों में भी हिस्सा लेती थी।

दासी महिलाओं को घरेलू कामों व जासूसी कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता था।

विधवा महिलाओं को जबरदस्ती सती किया जाता था।

सामान्यतः महिलाएं घरेलू कार्यों के साथ उत्पादन कामों में भी हिस्सा लेती थी।

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