सम्राट अशोक महान: संपूर्ण जीवनी

By gurudev

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मौर्य वंश के लोकप्रिय सम्राट अशोक महान की संपूर्ण जीवनी


1. परिवारिक पृष्ठभूमि

  • पूरा नाम: अशोक मौर्य (देवानांप्रिय प्रियदर्शी के नाम से भी प्रसिद्ध)।
  • वंश: मौर्य वंश।
  • पितामह: चन्द्रगुप्त मौर्य – मौर्य साम्राज्य के संस्थापक (चाणक्य/कौटिल्य की सहायता से)।
  • पिता: बिन्दुसार।
  • माता: शुभद्रंगी (धर्मा या सुभद्रांगी भी कहा जाता है), चंपा की ब्राह्मण कन्या।
  • भाई: लगभग 100 (कुछ इतिहासकार 5 प्रमुख उत्तराधिकारी मानते हैं, जिनमें सुसिम भी शामिल था)।
  • अशोक सबसे बड़े पुत्र नहीं थे, परंतु उनकी बुद्धिमत्ता और प्रशासनिक क्षमता के कारण वे शासक बने।

2. बचपन और शिक्षा

  • अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में हुआ।
  • वे बचपन से ही बलवान, बुद्धिमान और युद्धकला में निपुण थे।
  • उन्हें विज्ञान, प्रशासन और सैन्य शिक्षा दी गई।
  • युवावस्था में उनकी कठोरता और क्रूर स्वभाव के कारण उन्हें “चंड अशोक” कहा जाता था।

3. सत्ता की ओर बढ़त

  • बिन्दुसार ने उन्हें उज्जैन और तक्षशिला का राज्यपाल बनाया, जहाँ उन्होंने अपनी योग्यता सिद्ध की।
  • बिन्दुसार की मृत्यु (273 ईसा पूर्व) के बाद उत्तराधिकार संघर्ष हुआ।
  • अशोक ने अपने भाइयों को हराया (सुसिम सहित) और 268 ईसा पूर्व में गद्दी पर बैठे।
  • उनका राजाभिषेक 273 ईसा पूर्व में हुआ।

4. शासक के रूप में

  • अशोक ने मौर्य साम्राज्य को चरम पर पहुँचाया:
    • पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक
    • पूर्व में बंगाल और असम तक
    • उत्तर में हिमालय तक
    • दक्षिण में लगभग सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत (तमिल क्षेत्र को छोड़कर)।
  • प्रारंभ में उन्होंने विस्तार और विजय की नीति अपनाई।

5. कलिंग युद्ध – जीवन का मोड़

  • 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर आक्रमण किया।
  • यह युद्ध अत्यंत भीषण था – लगभग 1 लाख लोग मारे गए, 1.5 लाख बंदी बनाए गए, हजारों घायल हुए।
  • इस हत्याकांड को देखकर अशोक गहरे दुःख और पछतावे से भर उठे।
  • इसके बाद वे “चंड अशोक” से “धर्म अशोक” बन गए।

6. बौद्ध धर्म की ओर झुकाव

  • कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया।
  • उन्हें विशेष रूप से उपगुप्त (कुछ स्रोतों के अनुसार निग्रोध नामक युवा भिक्षु) ने प्रभावित किया।
  • उन्होंने औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म स्वीकार किया और इसके सबसे बड़े संरक्षक बने।

7. बौद्ध धर्म का प्रसार

  • अशोक ने बौद्ध धर्म को विश्व धर्म बनाने में योगदान दिया।
  • उन्होंने धर्म प्रचारक विभिन्न क्षेत्रों में भेजे:
    • उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संगमित्रा श्रीलंका गए।
  • अन्य प्रचारक नेपाल, तिब्बत, मध्य एशिया, ग्रीस और मिस्र तक भेजे गए।
  • उन्होंने अनेक स्तूप, विहार और मठ बनवाए।
  • तीसरी बौद्ध संगीति (लगभग 250 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र) का आयोजन कराया।

8. धम्म (नैतिक नीति)

अशोक ने अपना एक धर्म सिद्धांत बनाया, जिसे धम्म कहा गया:

  • बड़ों का आदर, बच्चों से स्नेह।
  • प्राणियों पर दया, पशुओं की रक्षा।
  • धार्मिक सहिष्णुता।
  • अहिंसा का पालन।
  • सत्य और सादगीपूर्ण जीवन।
  • जनकल्याण कार्य – अस्पताल, सड़कें, विश्राम गृह, कुएँ, वृक्षारोपण।

9. प्रमुख उपलब्धियाँ

  • लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण।
  • बौद्ध धर्म का अंतरराष्ट्रीय प्रसार।
  • पशु हिंसा पर प्रतिबंध।
  • 84,000 स्तूप निर्माण (परंपरा अनुसार)।
  • धम्म महामात्रों की नियुक्ति।

10. शिलालेख और अभिलेख

  • अशोक की नीतियाँ मुख्यतः शिलालेखों और स्तंभलेखों से ज्ञात होती हैं।
  • भाषा: प्राकृत, लिपि: ब्रह्मी (कुछ अभिलेख खरोष्ठी, यूनानी और अरामाई में भी)।
  • प्रमुख स्थल:
    • सारनाथ का सिंह स्तंभ (अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक)।
    • गिरनार (गुजरात), धौली और जौगड़ा (ओडिशा), मास्की (कर्नाटक), कंधार (अफगानिस्तान)

11. परिवार और संतान

  • प्रमुख रानी: असंधिमित्रा, बाद में तिष्यरक्षा।
  • संतान:
    • महेंद्र (पुत्र) – बौद्ध भिक्षु, श्रीलंका गए।
    • संगमित्रा (पुत्री) – बौद्ध भिक्षुणी, श्रीलंका में बोधि वृक्ष की शाखा ले गईं।
    • अन्य संतान का भी उल्लेख मिलता है, पर स्पष्ट नहीं।

12. मृत्यु

  • अशोक की मृत्यु लगभग 232 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र (पटना) में हुई।
  • जीवन के अंतिम समय में वे कमजोर हो गए और उत्तराधिकारी उन्हें महत्व नहीं देने लगे।
  • उनकी मृत्यु के बाद साम्राज्य धीरे-धीरे बिखरने लगा।

13. विरासत

  • अशोक को विश्व और भारत के इतिहास का महान शासक माना जाता है।
  • वे क्रूर विजेता से दयालु शासक बने।
  • उन्हें “अशोक महान” की उपाधि मिली।
  • सारनाथ का सिंह स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
  • अशोक चक्र भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के बीच में दर्शाया गया है।

✅ संक्षेप में, अशोक महान ने भारत को केवल विजय से नहीं, बल्कि धर्म, शांति और नैतिकता से एकजुट किया।

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