सम्राट बिंदुसार मौर्य: जिसका जन्म विष की बूँद से हुआ

By gurudev

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(पिता और पुत्र की महानता की छाया मे दबा विशाल व्यक्तित्व)

Bindusara Maurya – A Complete Biography


जन्म और वंशावली

  • बिंदुसार मौर्य (राज्यकाल: लगभग 297 ईसा पूर्व – 273 ईसा पूर्व) मौर्य वंश के दूसरे सम्राट थे।
  • वे चंद्रगुप्त मौर्य और उनकी पत्नी, जिन्हें अधिकतर परंपराएँ दुर्धरा मानती हैं, के पुत्र थे।
  • उनका जन्म लगभग 320 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) में हुआ।
  • एक कथा के अनुसार, रानी दुर्धरा की मृत्यु उस समय हुई जब उन्होंने गलती से वह भोजन खा लिया जिसमें चंद्रगुप्त को मारने हेतु विष मिलाया गया था। उस समय गर्भ में पल रहे बिंदुसार को राजवैद्यों ने एक प्रारंभिक शल्यक्रिया (संभवतः सीज़ेरियन) द्वारा बचाया।
  • इसी कारण उनका नाम “बिंदुसार” पड़ा (Bindu = बिंदु/बूंद, Sara = सार/शक्ति), जिसका अर्थ लिया जाता है “जिसके शरीर में असाधारण शक्ति हो”

  • बिंदुसार ने अपना बचपन पाटलिपुत्र के राजमहल में व्यतीत किया, जहाँ वे मौर्य साम्राज्य की विशाल प्रशासनिक व्यवस्था से घिरे रहे।
  • उनका पालन-पोषण कठोर अनुशासन में हुआ। वे सीखते थे –
    • राज्य-नीति और कानून के सिद्धांत (कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार)।
    • युद्धाभ्यास, शिकार और शारीरिक प्रशिक्षण।
    • वैदिक अनुष्ठान, साथ ही आजीवक जैसे अन्य पंथों की शिक्षाएँ।
  • उनके बचपन पर चाणक्य (कौटिल्य) का गहरा प्रभाव रहा, जो उनके पिता के प्रधान मंत्री और गुरु थे।

  • बिंदुसार ने शिक्षा मौर्य दरबार में प्राप्त की, जो विद्वानों, प्रशासकों और राजनयिकों का केंद्र था।
  • उनकी शिक्षा में सम्मिलित था –
    • राजनीति और शासन – कर-प्रणाली, न्याय और नौकरशाही की विधियाँ।
    • सैन्य विज्ञान – रणनीति, किलेबंदी, घुड़सवार और हाथी सेना का संचालन।
    • दर्शन और धर्म – वैदिक स्तोत्र, आजीवक मत और समकालीन दार्शनिक विचारधाराएँ।
    • विदेश नीति – यूनान, फारस और मध्य एशिया की राजनीतिक व्यवस्थाओं की जानकारी।
  • यह शिक्षा उन्हें एक विशाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाने के लिए व्यावहारिक रूप से दी गई थी।

  • लगभग 297 ईसा पूर्व, चंद्रगुप्त ने जैन भिक्षु भद्रबाहु के मार्गदर्शन में राजगद्दी त्याग दी और कर्नाटक जाकर उपवास (सल्लेखना) द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुए।
  • इसके बाद बिंदुसार मौर्य साम्राज्य के सम्राट बने।
  • चंद्रगुप्त जहाँ संस्थापक थे और अशोक सांस्कृतिक शिखर पर पहुँचाने वाले शासक बने, वहीं बिंदुसार को “स्थिरता और विस्तार देने वाला शासक” माना जाता है।
  • उन्होंने लगभग 25 वर्षों (297–273 ईसा पूर्व) तक शासन किया।

  • गद्दी पर बैठने के बाद उनका पहला कार्य था इतने विशाल और विविधतापूर्ण साम्राज्य को स्थिर रखना।
  • उनकी प्रमुख चुनौतियाँ थीं –
    1. उत्तर-पश्चिमी प्रांतों और मध्य भारत में विद्रोहों को दबाना।
    2. दक्षिण भारत (दक्षिण पठार) की ओर साम्राज्य का विस्तार करना।
    3. यूनानी शासकों (अलेक्ज़ेंडर के उत्तराधिकारी) को कूटनीति और सीमित युद्ध के माध्यम से नियंत्रित रखना।
  • उन्होंने साम्राज्य को मज़बूत और स्थिर बनाए रखा, जब इसके टूटने का खतरा सबसे अधिक था।

  • चाणक्य (कौटिल्य) प्रारंभिक वर्षों तक बिंदुसार के प्रधान मंत्री रहे।
  • उनके मार्गदर्शन से –
    • सत्ता का हस्तांतरण सुचारु रूप से हुआ।
    • गुप्तचर तंत्र और प्रशासन मज़बूत रहा।
    • बाहरी खतरों और आंतरिक विद्रोहों से साम्राज्य सुरक्षित रहा।+
  • कुछ जैन ग्रंथों में उल्लेख है कि दरबारी षड्यंत्रों के कारण बिंदुसार चाणक्य से असंतुष्ट हो गए थे, किंतु इसका ऐतिहासिक प्रमाण विवादित है।

  • बिंदुसार के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य ने यूनानी (हेलेनिस्टिक) राज्यों से कूटनीतिक और वाणिज्यिक संबंध बनाए रखे।
  • यूनानी लेखक एथेनेयस ने उन्हें अमित्रोखाटेस (Amitrochates) कहा है, जो संस्कृत “अमित्रघात” (शत्रुओं का संहारक) से निकला प्रतीत होता है।
  • उल्लेख मिलता है कि उन्होंने सीरिया के राजा एंटियोकस-I से सूखी अंजीर, मदिरा और एक दार्शनिक माँगा।
  • राजा ने अंजीर और मदिरा तो भेजी, परंतु दार्शनिक भेजने से इंकार कर दिया।
  • यह दर्शाता है कि मौर्य साम्राज्य उस युग के अंतर्राष्ट्रीय राजनय और व्यापार से जुड़ा हुआ था।

  • राजधानी: पाटलिपुत्र (पटना)
  • साम्राज्य की सीमाएँ:
    • पश्चिम: अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान।
    • उत्तर: हिमालय।
    • पूर्व: बंगाल।
    • दक्षिण: दक्कन तक (कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु), किंतु कलिंग अशोक के समय तक स्वतंत्र रहा।
  • प्रशासन:
    • चंद्रगुप्त और चाणक्य के प्रशासनिक ढाँचे को जारी रखा।
    • केंद्रीकृत शासन, प्रांतों में राजकुमार या राज्यपाल।
    • मज़बूत जासूसी तंत्र, राजस्व अधिकारी और विशाल सेना।
  • उनके शासनकाल में शांति, स्थिरता और विस्तार प्रमुख रहे।

  • बिंदुसार ने विंध्य पर्वत के दक्षिण दक्कन तक विजय अभियान चलाया।
  • जैन ग्रंथों के अनुसार उन्होंने 16 राज्यों को साम्राज्य में मिलाया
  • उनकी सेना विशेषकर हाथी-दल विश्व में अद्वितीय थी।
  • उनके अभियान मुख्यतः दक्षिणी विस्तार और आंतरिक स्थिरता पर केंद्रित रहे।

  • चंद्रगुप्त ने जैन धर्म अपनाया था और अशोक ने बौद्ध धर्म, किंतु बिंदुसार का झुकाव मक्खलि गोसाला द्वारा संचालित आजीवक संप्रदाय की ओर था।
  • आजीवक दर्शन नियति और भाग्यवाद पर आधारित था।
  • बिंदुसार ने धार्मिक सहिष्णुता का पालन किया और जैन, बौद्ध, आजीवक तथा वैदिक सभी परंपराओं को संरक्षण दिया।

  • बिंदुसार की मृत्यु लगभग 273 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई।
  • उनकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर उनके पुत्रों में संघर्ष हुआ।
  • बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार उनके लगभग 16 से 100 पुत्र थे।
  • प्रमुख पुत्र:
    • सुसिमा – ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी, किंतु अशोक से हार गए।
    • अशोक – जिन्होंने अंततः विजय पाई और तीसरे सम्राट बने।

  1. बिंदुसार को “एक छाया में राजा” कहा जाता है क्योंकि उनकी उपलब्धियाँ चंद्रगुप्त और अशोक की महानता के बीच छिप गईं।
  2. उन्होंने साम्राज्य को स्थिर किया और दक्षिण भारत में विस्तार किया।
  3. यूनानी शासकों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए।
  4. धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, जिसने अशोक की धम्म नीति की नींव रखी।
  5. उन्हें यूनानी इतिहासकारों ने “अमित्रोखाटेस” (शत्रुओं का संहारक) कहा।

बिंदुसार मौर्य को भले ही चंद्रगुप्त और अशोक जैसी ख्याति न मिली हो, किंतु वे मौर्य साम्राज्य के “अटूट कड़ी” थे।
उन्होंने साम्राज्य को स्थिर, सुरक्षित और दक्षिण में विस्तारित कर अपने पुत्र अशोक को एक मज़बूत आधार सौंपा।
इस प्रकार बिंदुसार को मौर्य युग का “मौन निर्माता” कहा जा सकता है, जिसने आगे आने वाले सुवर्ण काल का मार्ग प्रशस्त किया।


संक्षेप में: बिंदुसार एक सक्षम शासक, दक्षिण के विजेता, यूनानियों से राजनय स्थापित करने वाले, आजीवक पंथ के संरक्षक और मौर्य साम्राज्य को स्थिर रखने वाले शासक थे।


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