नोटस📝 विद्रोही और राज (Rebels and the Raj) अध्याय 10 , कक्षा 12 इतिहास (NCERT)

By gurudev

Updated on:

विस्तृत, 100% मौलिक, विद्यार्थियों,शिक्षकों व प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु उपयुक्त नोट्स

1857 का विद्रोह : एक परिचय

1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसे इतिहास में कई नामों से जाना गया—

  • सिपाही विद्रोह
  • महान विद्रोह
  • पहला स्वतंत्रता संग्राम
  • भारतीय विद्रोह (Mutiny)
  • राष्ट्रीय विद्रोह

ब्रिटिश इसे “Mutiny” कहते थे क्योंकि उनकी दृष्टि में यह विद्रोह सिर्फ़ ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों की निष्ठा–भंग था।
लेकिन भारतीय राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसे व्यापक जनअसंतोष और विदेशी शासन के खिलाफ़ पहला बड़ा राष्ट्रीय संघर्ष माना।

NCERT इस अध्याय में मुख्य रूप से तीन बातों पर फोकस करता है—

  1. विद्रोह किन तरीकों से और किन कारणों से फैला?
  2. अंग्रेजों ने विद्रोह को किस तरह देखा, दर्ज किया, समझा और दमन किया?
  3. इतिहासकारों ने 1857 की घटनाओं की व्याख्या कैसे की?

विद्रोह क्यों हुआ? (Reasons Behind the Revolt)

विद्रोह के कारण बहुआयामी थे —

  • लार्ड डलहौज़ी की लैप्स की नीति (Doctrine of Lapse)
    • झाँसी
    • सतारा
    • नागपुर
    • झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र ‘मानिकर्णिका’ स्वीकार न करना
  • अवध का विलय (1856)
    • अंग्रेजों द्वारा ‘कुशासन’ का आरोप लगाकर
    • अवध के किसान, तालुकदार, सैनिक पहले से असंतुष्ट थे
  • परंपरागत राजाओं का अस्तित्व संकट में आ गया
  • मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का राजसी अधिकार समाप्त कर देना
    • लाल किले से हटाकर किला मेरठ ले जाने का तीतर
    • सन् 1849 के बाद “सम्राट” की उपाधि का क्रमशः समाप्त होना

ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ अत्यंत शोषणकारी थीं—

  • भूमि-राजस्व नीतियाँ
    • स्थायी बंदोबस्त, महालवारी, रैयतवाड़ी
    • किसानों पर करों का बढ़ता बोझ
  • तालुकदारों का विस्थापन (विशेषकर अवध)
  • हस्तशिल्प एवं परंपरागत उद्योग का पतन
  • भारतीय बाजार पर ब्रिटिश वस्तुओं का कब्ज़ा

भारतीय समाज में यह धारणा बढ़ रही थी कि अंग्रेज—

  • हिन्दू–मुस्लिम धर्मों को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं
  • सामाजिक सुधारों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं
  • चर्चों और मिशनरियों की सक्रियता ने भय और अविश्वास फैलाया
  • “बलपूर्वक धर्म परिवर्तन” का डर
  • भारतीय सिपाही सेना का 87% हिस्सा थे, पर待遇 बहुत खराब
  • ऊँचे पदों पर केवल अंग्रेजों की नियुक्ति
  • विदेश में सेवा करने पर धार्मिक रीति–रिवाजों के उल्लंघन का भय
  • वेतन और भत्तों में भेदभाव
  • मुख्य तात्कालिक कारण : कारतूस का मामला
  • नई एनफ़ील्ड रायफल में इस्तेमाल होने वाले कारतूसों को दाँत से काटना पड़ता था
  • कारतूसों पर गाय और सुअर की चर्बी लगे होने का अफ़वाह
  • हिंदू और मुस्लिम दोनों के धार्मिक विश्वासों पर सीधा आघात
  • मेरठ में 85 सिपाहियों ने कारतूस लेने से मना किया → कठोर सजा
    10 मई 1857 को विद्रोह की शुरुआत

विद्रोह की शुरुआत और फैलाव

  • 10 मई 1857
  • कैद किए गए सिपाहियों को छुड़ाया गया
  • अंग्रेज अधिकारियों पर हमला
  • सिपाही दिल्ली की ओर कूच कर गए
  • रास्ते में कई स्थानों पर ग्रामीण भी जुड़ते गए
  • 11 मई 1857
  • बहादुर शाह जफर को नेता घोषित किया गया
  • यह प्रतीकात्मक रूप से एक बड़े राजनीतिक मोड़ का संकेत
  • उत्तर भारत के बड़े हिस्से में
  • अवध, कानपुर, झाँसी, बरेली, मध्य भारत
  • बिहार (कुंवर सिंह)
  • रोहिलखंड
  • बुंदेलखंड
  • राजस्थान के कुछ हिस्से

विद्रोह में शामिल प्रमुख नेता

  • वृद्ध, लेकिन राष्ट्रीय प्रतीक
  • मुगल साम्राज्य की खोई मर्यादा का प्रतीक
  • उनके पुत्रों की हत्या अंग्रेजों ने की (हडसन ने गोली मारी)
  • डलहौज़ी की लैप्स नीति के खिलाफ
  • झाँसी की रक्षा करते हुए वीरगति
  • महारानी को ब्रिटिश सेनाओं ने सबसे ताकतवर विरोधी माना
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र
  • पेंशन रोकने के कारण अंग्रेजों से नाराज
  • विद्रोह के सबसे प्रतिभाशाली जनरल
  • गुरिल्ला युद्ध में निपुण
  • वाजिद अली शाह के निर्वासन के बाद नेतृत्व
  • अंग्रेजी नीतियों के खिलाफ़ जनता को संगठित किया
  • 80 वर्ष की आयु में भी युद्ध का नेतृत्व
  • अरrah उनका मुख्य केंद्र

ग्रामीण और सामान्य जनता की भागीदारी

NCERT में इस बात पर जोर दिया गया है कि विद्रोह केवल सिपाहियों का नहीं था, बल्कि—

  • किसान
  • कारीगर
  • तालुकदार
  • साधारण ग्रामीण
  • स्थानीय नेता
  • धार्मिक संत

सभी ने सक्रिय भूमिका निभाई।

  • ज़मींदारों और तालुकदारों को हटाए जाने से असंतोष
  • राजस्व में वृद्धि
  • व्यापारियों द्वारा शोषण
  • अंग्रेज़ों द्वारा अधिकार छीन लेना
  • अपनी सैन्य शक्ति और स्थानीय प्रतिष्ठा का इस्तेमाल
  • अवध का विद्रोह मुख्यतः तालुकदारी नेटवर्क पर आधारित था

विद्रोह का नेतृत्व संरचना

विद्रोह का कोई एक केंद्रीकृत नेतृत्व नहीं था।
हर क्षेत्र में नेतृत्व अलग–अलग था।
इससे विद्रोह क्षेत्रीय विद्रोहों का समूह बन गया।

  • मेरठ में सिपाही
  • दिल्ली में बहादुर शाह
  • झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई
  • कानपुर में नाना साहेब
  • अवध में तालुकदार
  • बिहार में कुंवर सिंह

इसलिए जिसे ब्रिटिश ने “स्प्रेड” कहा, वह वास्तव में स्थानीय स्तर पर जनता का स्वतःस्फूर्त आंदोलन था।


अंग्रेजों की प्रतिक्रिया (Company’s Response)

  • दिल्ली पर पुनः कब्ज़ा
  • अंग्रेजों ने दिल्ली में भारी नरसंहार किया
  • इलाहाबाद, बनारस आदि में सख्त दमन
  • कानपुर में प्रतिशोध (Cawnpore Massacre) की आड़ में अत्यधिक हिंसा

विद्रोह के बाद ब्रिटिशों ने—

  • सेना का पुनर्गठन
  • भारतीयों को तोपखाने से हटाया
  • यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाई
  • “Divide and Rule” नीति को मजबूत किया

1858 का शासन अधिनियम (Government of India Act 1858)

विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त—

  • भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के हाथ
  • वायसराय की नियुक्ति
  • शांति का वादा
  • भारतीय रियासतों को अप्रत्यक्ष आश्वासन

विद्रोह के परिणाम

ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया।

क्वीन विक्टोरिया के नाम पर शासन।

  • भारतीयों पर अविश्वास
  • तोपखाने को पूरी तरह अंग्रेजों के हवाले
  • जातीय–धार्मिक विभाजन को बढ़ावा
  • हिन्दू–मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा
  • सिखों और पठानों को अंग्रेजों के पक्ष में रखा

हालाँकि विद्रोह असफल रहा, पर—

  • राष्ट्रीय चेतना का बीज
  • स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रारंभिक चरण

इतिहासकारों की व्याख्याएँ (Interpretation)

  • इसे “Mutiny” कहा
  • इसे अनुशासनहीनता माना
  • राजनीतिक महत्व को नकारा
  • इसे “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” कहा
  • राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ माना
  • आर्थिक कारणों को मुख्य बताया
  • किसान असंतोष को प्रमुख माना
  • इसे “लोकप्रिय विद्रोहों की श्रृंखला”
  • स्थानीय मुद्दों और क्षेत्रीय असंतोष का कुल योग माना

विद्रोह का विस्तार : दिल्ली, मेरठ और आसपास के क्षेत्र


(A) मेरठ : वह स्थान जहाँ से चिंगारी उठी

  • 85 भारतीय सिपाहियों को चर्बी लगे कारतूसों के उपयोग से इंकार करने पर कठोर दंड मिला।
  • उन्हें सार्वजनिक रूप से बेड़ियों में जकड़कर कैद किया गया।
  • यह कदम पूरे छावनी में गहरे असंतोष का कारण बना।
  • अपने साथियों का अपमान और भारी सजा देखकर सिपाही भड़क गए।
  • विद्रोहियों ने हथियारागार पर कब्जा किया।
  • अंग्रेज़ अधिकारियों पर हमला किया।
  • कैद किए गए सिपाहियों को मुक्त किया गया।
  • विद्रोही टुकड़ी ने तत्काल निर्णय लिया कि—
    👉 दिल्ली चलो
    क्योंकि दिल्ली उस समय भी भारतीयों के लिए राष्ट्रीय भावनाओं का प्रतीक थी।
  • रात भर में विद्रोही दिल्ली पहुँच गए (लगभग 60 किलोमीटर)।
  • रास्ते में लोग जुड़कर विद्रोहियों की संख्या बढ़ाते गए।

(B) दिल्ली : विद्रोह का केंद्र

  • क्योंकि दिल्ली में मुगल शासक बहादुर शाह ज़फ़र रहते थे।
  • मुगल नाम अब भी भारतीयों में सम्मान, परंपरा और वैधता का प्रतीक था।
  • विद्रोहियों के लिए यह ‘राजनीतिक वैधता’ का केंद्र था।

सिपाही सीधेतौर पर लाल किले पहुँचे।
उन्होंने बहादुर शाह ज़फ़र से कहा—
👉 “आप हमारे बादशाह हैं। हमें आपका नेतृत्व चाहिए।”

  • उन्होंने पहले हिचकिचाहट दिखाई।
  • वे वृद्ध थे और राजनीतिक रूप से भी निष्क्रिय।
  • परंतु भीड़ ने उन पर दबाव डाला।
  • अंततः उन्होंने विद्रोहियों का समर्थन किया।

इस घोषणा ने पूरे उत्तर भारत को संदेश दिया—
👉 “विद्रोह सिर्फ़ सिपाहियों का नहीं है। मुगल सम्राट भी साथ हैं।”


(C) दिल्ली में स्थिति कैसे बदली?

  • दिल्ली के कलेक्टर, मेजर हडसन और अन्य अधिकारी मारे गए।
  • कंपनी सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया।
  • लाल किला विद्रोहियों का मुख्यालय बन गया।
  • देशभर के विद्रोही दिल्ली आने लगे।
  • दिल्ली में बैठकर व्यापक घोषणाएँ जारी की गईं।
  • बहादुर शाह के पुत्रों को अहम जिम्मेदारियाँ दी गईं।
  • नई शासन व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास।

लेकिन ध्यान रहे—
👉 दिल्ली में कोई संगठित, योजनाबद्ध सरकार नहीं बन सकी।
सैनिक उत्तेजित थे, नेतृत्व कमजोर था, संसाधन कम थे।


(D) अंग्रेजी सेना की प्रतिक्रिया — दिल्ली पर हमला

ब्रिटिश सेना ने दिल्ली को पुनः कब्जा करने के लिए कई सप्ताह तक युद्ध किया।

  • अंग्रेज सेना ने कश्मीरी गेट की ओर से हमला किया।
  • अंदर प्रवेश करने के बाद शहर में भारी रक्तपात हुआ।
  • हजारों नागरिक मारे गए।
  • वे हुमायूँ के मकबरे में शरण लिए हुए थे।
  • मेजर हडसन ने ज़फ़र को आत्मसमर्पण कराया।
  • उनके तीन पुत्रों और एक पौत्र को दीवार के पास गोली मार दी
  • उन्हें रंगून भेज दिया गया।
  • वहीं 1862 में उनकी मृत्यु हो गई।

Delhi का पतन विद्रोह के लिए सबसे बड़ा झटका था।


NCERT का विशेष बिंदु : ब्रिटिश दस्तावेज़ों में दिल्ली

ब्रिटिश सरकारी रिपोर्टों (Confidential Papers, Military Reports) में लिखा है—

  • “Delhi was the biggest seat of rebellion.”
  • “Capturing Delhi was necessary to crush the rebellion.”

ब्रिटिश अभिलेख दिखाते हैं कि—
👉 दिल्ली को कब्जा करना ब्रिटिश सेना के लिए मनोवैज्ञानिक विजय था।


(E) विद्रोह में दिल्ली के नागरिकों की भूमिका

  • व्यापारी
  • कारीगर
  • मजदूर
  • मुसलमान और हिंदू दोनों
  • कई स्थानीय समूहों ने सैन्य और आर्थिक मदद दी
  • जामा मस्जिद क्षेत्र से हथियार और रसद
  • अनाज की कमी
  • गन्दगी और बीमारी
  • प्रशासनिक अव्यवस्था
  • सैनिकों के अनुशासन में कमी
  • कई स्थानों पर अफरातफरी
  • अंग्रेज़ों से जुड़े लोगों को निशाना
  • व्यापारियों पर दबाव
  • यह अव्यवस्था अंततः विद्रोह कमजोर करने का एक कारण बनी

दिल्ली पतन के बाद विद्रोह का भविष्य

दिल्ली गिरने के बाद—

  • विद्रोह की “राजनीतिक वैधता” कमजोर
  • नेतृत्व का अभाव
  • अंग्रेज़ों ने पुनः आत्मविश्वास प्राप्त किया
  • विद्रोहियों में निराशा

लेकिन इससे विद्रोह की अंतिम समाप्ति नहीं हुई।
कई क्षेत्रों में संघर्ष जारी रहा।


कारतूस का मुद्दा : विस्तार से (NCERT के अनुसार)

यह 1857 के अध्याय का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए यहाँ विस्तृत व्याख्या दे रहा हूँ।

  • एनफ़ील्ड राइफल की गोलियाँ कागज़ में लिपटी होती थीं।
  • उन्हें दाँत से काटकर बारूद भरना पड़ता था।
  • आम सिपाहियों को सूचना मिली कि—
    “राइफल के कारतूस गाय और सुअर की चर्बी से बने थे।”
  • हिंदू सैनिकों के लिए गाय पवित्र
  • मुस्लिम सैनिकों के लिए सुअर निषिद्ध

यह समाचार सिपाहियों की धार्मिक आस्थाओं पर सीधा आघात था।

  • सैनिकों ने कारतूस लेने से इंकार किया
  • मंगल पांडे ने आक्रोश में ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला किया
  • मंगल पांडे को फाँसी

यह घटना कारतूस की अफवाह को “सत्य” में बदलने का एक बड़ा कारण बनी।

कारतूस लेने से इनकार करने पर सामूहिक सजा—
👉 विद्रोह की चिंगारी

  • यह सिर्फ कारतूस का मुद्दा नहीं था
  • यह अविश्वास का प्रतीक बन गया
  • सैनिकों ने मान लिया कि अंग्रेज़ जानबूझकर धर्म नष्ट करना चाहते हैं
  • इसीलिए कारतूस विद्रोह का “Trigger Point” बना

विद्रोह ग्रामीण क्षेत्रों में कैसे फैला? (NCERT का मुख्य भाग)

विद्रोह ज़मीनी स्तर पर इसलिए फैला क्योंकि—

  • किसान अंग्रेज़ी कराधान से त्रस्त
  • तालुकदारों से अधिकार छीन लिए गए
  • सैनिक अपने गाँवों के लोगों को प्रेरित करते
  • धार्मिक नेताओं का प्रभाव
  • 1856 में रियासत के विलय के बाद
  • हजारों तालुकदार बेरोज़गार
  • किसानों पर कड़ा राजस्व बोझ
  • अंग्रेज़ों और स्थानीय अधिकार समूहों में संघर्ष
  • इसलिए अवध में विद्रोह केवल सैनिक आधार पर नहीं —
    बल्कि किसानों और तालुकदारों का सम्मिलित जन–आंदोलन था।

तालुकदारों का पुनर्स्थापन (Reinstatement)

यह NCERT का अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है।

  • तालुकदारों को हटाना बहुत बड़ी गलती थी।
  • ग्रामीणों पर नियंत्रण के लिए तालुकदार आवश्यक थे।

अवध में नए बंदोबस्त (settlement) में
👉 तालुकदारों को फिर से ज़मीनें वापस की गईं।

ब्रिटिशों ने लिखा—

  • “Only the taluqdars can control the countryside.”

इससे पता चलता है कि विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों की नीति स्थिर प्रशासन और सुरक्षा पर केंद्रित हो गई।


विद्रोह में संचार माध्यम (Rumours, Messages, Chapatis)

यह NCERT का एक रोचक विषय है।

  • विद्रोह से पहले कई महीनों तक
  • गाँव–गाँव चपातियाँ भेजी जा रही थीं
  • बिना किसी लिखित संदेश के
  • परंतु यह संदेश फैल रहा था कि
    “कुछ बड़ा होने वाला है।”
  • यह एक प्रकार का अनौपचारिक संचार नेटवर्क था
  • लोग जानते थे कि विद्रोह आने वाला है
  • यह संकेत–प्रतीक के रूप में कार्य करता था

कानपुर का विद्रोह — नाना साहेब का संघर्ष

कानपुर 1857 के विद्रोह का सबसे रक्तरंजित और राजनीतिक रूप से सबसे संगठित केंद्र था।
यहाँ नाना साहेब, तात्या टोपे, आजाद सैनिकों और स्थानीय जनता ने मिलकर अंग्रेज़ों को भारी चुनौती दी।


(A) नाना साहेब कौन थे?

  • पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र
  • अंग्रेजों ने Doctrine of Lapse के तहत उनकी पेंशन रोक दी
  • कोई आधिकारिक मान्यता नहीं दी
  • इससे उनमें अंग्रेजों के प्रति गहरा रोष था

👉 अपने पूर्वजों के पेशवाई अधिकार और सम्मान को पुनः हासिल करना।

कानपुर में विद्रोह फैलने पर वे स्वाभाविक नेता बनकर उभरे।


(B) कानपुर में विद्रोह कैसे शुरू हुआ?

  • 4 जून 1857 को कानपुर में विद्रोह भड़का
  • सिपाहियों ने हथियारागार और छावनी पर कब्जा किया
  • अंग्रेज़ों के अधिकारी हैरान रह गए

अंग्रेज़ और उनके परिजन एक स्थान पर बंद किए गए
लेकिन परिस्थितियाँ दिनों-दिन बिगड़ती गईं

अंततः 15 जुलाई को गोलीबारी और प्रतिशोध के बीच
कई अंग्रेज़ महिलाओं और बच्चों की मृत्यु हुई।

  • वे इसे “कानपुर नरसंहार” कहते हैं
  • इस घटना को वे “सबसे क्रूर” बताते हैं
  • भोजन-अभाव, बीमारी और अफरातफरी कारण
  • यह घटनाएँ ‘युद्ध–जनित त्रासदी’ थीं
  • कई भारतीय विद्रोही नेतृत्व इस घटना से सहमत नहीं थे

NCERT इस मामले को भावनात्मक और विवादित बताता है।


(C) ब्रिटिशों की प्रतिक्रिया — कानपुर को पुनः कब्जा करना

ब्रिटिश जनरल हेनरी हैवलॉक ने कानपुर पर दोबारा आक्रमण किया

  • घोर लड़ाई
  • नदी के किनारे संघर्ष
  • विद्रोही पीछे हटने लगे
  • वे बिठूर की ओर चले गए
  • तात्या टोपे उनके साथ रहे
  • बाद में दोनों मध्य भारत की ओर चले गए

अंततः नाना साहेब का कोई ठिकाना नहीं मिला।
उनके बारे में अंतिम रिकॉर्ड अस्पष्ट है।


तात्या टोपे — संघर्ष का महान रणनीतिकार

तात्या टोपे विद्रोह के सबसे बड़े सैन्य मस्तिष्क माने जाते हैं।

  • गुरिल्ला युद्ध की रणनीति
  • तेज़ हमले
  • घुमावदार मार्ग
  • जंगल और पठार का उपयोग
  • अंग्रेज सेना को महीनों परेशान रखा
  • वे राजस्थान, मध्य भारत, जंगलों और पहाड़ियों में भटकते रहे
  • अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पा रहे थे
  • एक स्थानीय राजा के विश्वासघात से वे पकड़े गए
  • अप्रैल 1859 में फाँसी

तात्या टोपे का संघर्ष विद्रोह की सबसे दीर्घकालीन प्रतिरोध कथा है।


झाँसी — रानी लक्ष्मीबाई का असाधारण युद्ध

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम विद्रोह का सबसे प्रेरणादायक और सबसे लोकप्रिय प्रतीक

(A) रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेज़ों से विवाद — Doctrine of Lapse

  • झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु
  • दत्तक पुत्र दामोदर राव को अंग्रेज़ों ने मान्यता नहीं दी
  • इसलिए झाँसी पर अधिकार कर लिया गया

यह रानी के लिए अत्यधिक अपमानजनक था
और यही विद्रोह में उनके प्रवेश का प्रमुख कारण बना।


(B) झाँसी में विद्रोह कैसे हुआ?

  • जून 1857 में झाँसी में विद्रोह भड़क उठा
  • कई अंग्रेज अधिकारी मारे गए
  • रानी पर हत्या का आरोप लगाया गया
  • रानी ने स्पष्ट कहा —
    👉 “यह घटना मेरे नियंत्रण में नहीं थी।”

लेकिन अंग्रेजों ने रानी को दोषी ठहराया।


(C) रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध कौशल

रानी लक्ष्मीबाई ने—

  • किले की सुरक्षा मजबूत की
  • सैनिक प्रशिक्षण दिया
  • महिलाओं की टुकड़ी तैयार की
  • पेशवाओं और मराठा प्रमुखों से गठजोड़ किया

अंग्रेजों से पहला मुख्य युद्ध (मार्च–अप्रैल 1

(D) कालपी और फिर ग्वालियर

कालपी में—

  • रानी लक्ष्मीबाई
  • तात्या टोपे
  • नाना साहेब की शेष सेना
    इकट्ठा हुई।

अंग्रेजों ने कालपी भी जीत लिया
तो सेनाएँ ग्वालियर की ओर गईं।

  • विद्रोहियों ने ग्वालियर किले पर कब्जा किया
  • यह एक बड़ा मनोबल–वर्धक कदम था

लेकिन अंग्रेजों ने पलटवार कर दिय

(E) रानी लक्ष्मीबाई की वीरगति

18 जून 1858
ग्वालियर के पास कोटरा गाँव

  • रानी ने पुरुष सैनिक के वेश में युद्ध किया
  • भारी चोट के बाद शहीद हुईं

जनरल ह्यू रोज़ ने लिखा —
👉 “She was the bravest and best of all rebel leaders.”

NCERT इसे विद्रोह की “सबसे भावनात्मक और प्रेरणादायक कथा” मानता है।


अवध में विद्रोह — सबसे बड़ा किसान आंदोलन

अवध में संघर्ष सैनिक नहीं—
बल्कि किसान–आधारित जनविद्रोह

(A) अवध विलय — मुख्य कारण

1856 में लार्ड डलहौज़ी ने अवध को मिलाया

  • नवाब वाजिद अली शाह को हटाया गया
  • ‘कुप्रशासन’ का आरोप लगाया गया
  • हजारों तालुकदार अधिकारों से वंचित हो गए
  • बड़े पैमाने पर बेरोजगारी

यह निर्णय विद्रोह की सबसे बड़ी पृष्ठभूमि बना।

(B) अवध का नेतृत्व

बेगम हज़रत महल

  • नवाब वाजिद अली शाह की बेग़म
  • लखनऊ में विद्रोह की कमान
  • 11 वर्षीय बिरजिस क़द्र को ‘नवाब’ घोषित किया

उन्होंने—

  • जनता को संगठित किया
  • तालुकदारों को एकजुट किया
  • अंग्रेजों के खिलाफ घोषणाएँ जारी कीं

उनका योगदान इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है|

(C) अवध में ग्रामीण विद्रोह के कारण

NCERT के अनुसार प्रमुख कारण—

  1. तालुकदारों की ज़मीनें छीन ली गई थीं
  2. किसानों पर कठोर लगान
  3. ‘Summary Settlement’ नीति से भारी असंतोष
  4. नवाब के हटने से राजनैतिक संरक्षण समाप्त
  5. सैनिकों के परिवार अवध में रहते थे
  6. सैनिकों ने गाँवों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया

इसलिए अवध विद्रोह केवल सेना नहीं—
बल्कि किसान क्रांति था।

(D) लखनऊ का युद्ध

लखनऊ विद्रोह का प्रमुख केंद्र था।

  • रेजीडेंसी में अंग्रेज़ अधिकारी और उनके परिवार फँसे
  • महीनों तक युद्ध
  • कई मृत्यु
  • खाद्यान्न की भारी कमी
  • बेगम हज़रत महल
  • मौलवी अहमदुल्लाह शाह
  • तालुकदारों की सेना
  • भारी तोपखाना
  • सड़कों पर घर–दर–घर लड़ाई
  • अंततः लखनऊ पर अंग्रेजों का नियंत्रण

बिहार — कुंवर सिंह की वीरता

कुंवर सिंह 1857 के सबसे अनुभवी, रणनीतिक और सुदृढ़ नेताओं में से थे

(A) कुंवर सिंह कौन थे?

  • जगदीशपुर (बिहार) के जमीदार (राजा)
  • 80 वर्ष की आयु
  • अंग्रेजों की ज़मीन–नीतियों से नाराज़
  • सैन्य नेतृत्व में पारंगत

(B) उनका विद्रोह

  • अप्रैल 1857 में उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया
  • आरा में अंग्रेजों को हराया
  • बंगाल और UP की सीमा पर अनेक युद्ध लड़े
  • सोन नदी पार करते समय उनका हाथ गोली से घायल
  • उन्होंने तीर–कमान से घायल हाथ काट दिया
    — यह घटना भारतीय इतिहास में साहस का अद्वितीय उदाहरण मानी जाती है।

(C) मृत्यु

  • 1858 में अंग्रेजों से संघर्ष के बाद निधन
  • उनका विद्रोह बिहार में जन–समर्थन का प्रतीक था

NCERT उन्हें “विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित बुजुर्ग नेताओं” में गिनता है।


राजस्थान और पंजाब

हालाँकि पंजाब और राजस्थान में बड़ी सेना अंग्रेज़ों के साथ थी
फिर भी कई छोटे विद्रोह हुए।

  • कुछ सिख गुटों ने अंग्रेजों का साथ दिया (इसे NCERT विशेष रूप से उल्लेख करता है)
  • क्योंकि 1849 में अंग्रेजों ने सिखों को हराया था
  • कई सिख अंग्रेज़ों से गठबंधन कर चुके थे
  • सपेरा, भील, मीणा जैसे जनजातीय समुदाय सक्रिय
  • कोटा, नसीराबाद, बूँदी में विद्रोह

विद्रोह के दौरान धार्मिक नेता

NCERT यह महत्वपूर्ण बात बताता है कि—
कई धार्मिक नेता विद्रोह के प्रेरक बने।

  • मौलवी अहमदुल्लाह शाह (अवध)
  • शाह मल (गाजियाबाद)
  • देवी सिंह (झाँसी का क्षेत्र)

ब्रिटिश मानते थे कि—
👉 “धार्मिक नेताओं ने विद्रोह को वैचारिक दिशा दी।”


विद्रोह में महिलाएँ

महिलाओं की भागीदारी विद्रोह का अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है।

  1. रानी लक्ष्मीबाई (झाँसी)
  2. बेगम हज़रत महल (अवध)
  3. अजमेर, मेरठ और दिल्ली की स्थानीय महिलाएँ
  4. झाँसी की महिला फाइटर्स — झलकारी बाई आदि

NCERT झलकारी बाई का उल्लेख लोक–कथाओं और “popular memory” के संदर्भ में करता है।


विद्रोह के विफल होने के कारण (NCERT विश्लेषण)

यह भाग परीक्षाओं में सबसे अधिक पूछा जाता है।

  • कोई केंद्रीय नेता नहीं
  • अलग–अलग क्षेत्रीय सेनाएँ
  • हथियार, बारूद कम
  • खाद्यान्न, चिकित्सीय संसाधनों की कमी
  • बेहतर तोपें
  • अधिक संगठित सेना
  • दक्षिण भारत शांत रहा
  • पंजाब का बड़ा हिस्सा अंग्रेजों के साथ रहा
  • बड़े ज़मींदार, व्यापारी, राजपूत प्रमुख
  • कोई दीर्घकालिक योजना नहीं
  • केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया

ग्रामीण विद्रोह, जनभागीदारी और क्रूर दमन


ग्रामीण भारत में असंतोष : कारण और रूप

1857 का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था—
यह पूरे ग्रामीण भारत में फैला सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विद्रोह था।

ब्रिटिश शासन के आगमन ने पारंपरिक भूमि सम्बन्धों को पूरी तरह बदल दिया :

  • जमींदारी व्यवस्था का विस्तार
  • पारंपरिक रैयत–किसान संबंध टूटे
  • गाँवों में पुराने पंचायत–प्रमुखों का प्रभाव कम हुआ
  • लगान की नई, अधिक और कठोर दरें तय की गईं

ब्रिटिश लगान नीतियाँ आदिवासियों, किसानों, भूमिहीनों सभी के लिए विनाशकारी थीं।

  • लगान निर्धारित था, चाहे फसल हो या न हो
  • लगान सैनिकों द्वारा वसूला जाता था, जिससे डर पैदा होता था
  • फसल खराब होने पर भी लगान भरना पड़ता था
  • लगान जमा न होने पर
    • जमीन जब्त
    • नीलामी
    • बागानों या नील की खेती के लिए मजबूर किया जाना

लोग लगान और निजी खर्चों के लिए कर्ज लेने को मजबूर हुए।

महाजन:

  • अत्यधिक ब्याज
  • कागजी चालाकियाँ
  • भूमि हड़पना
  • किसान को गिरमिट मजदूरी में बदल देना

महाजनी शोषण ग्रामीण विद्रोहों की मुख्य वजह बना।


ग्रामीण विद्रोह की संरचना

  • भूमिहीन मज़दूर
  • गरीब किसान
  • बागी सैनिक
  • तालुकेदार
  • पिछड़े समुदाय
  • जमींदार जिनकी भूमि छीनी गई
  • आदिवासी समूह
  • कुछ स्थानों पर अमीर कृषक भी

विद्रोह के दौरान ग्राम समाज एकजुट होकर कार्य करता था।

  • गाँव के मुखिया नेतृत्व करते थे
  • धर्मगुरु, साधु–संत संदेश फैलाते थे
  • महिलाएँ भी रसद पहुँचाने और संदेश ले जाने में शामिल थीं
  • समाज के सभी वर्ग विद्रोहियों को आश्रय और भोजन देते थे

अफवाहें जानकारी फैलाने का मुख्य माध्यम थीं।

मुख्य अफवाहें—

  • अंग्रेज कारतूसों में गाय–सुअर की चर्बी लगा रहे हैं ताकि हिंदू–मुस्लिम को अपवित्र किया जाए
  • अंग्रेज भारत में धर्म परिवर्तन कराएंगे
  • ब्रिटिश सरकार भूमि की नीलामी करके ईसाइयों को दे रही है

इन अफवाहों ने जन–भावना को भड़का कर ग्रामीण विद्रोह का विस्फोटक वातावरण बनाया।


तालुकेदारों और जमींदारों की भूमिका

ब्रिटिश शासन में तालुकेदारों को दोहरी मार झेलनी पड़ी:

  • उनकी रैयतों पर परंपरागत अधिकार समाप्त
  • कई तालुकेदारों की ज़मीनें लगान न भर पाने के कारण नीलाम
  • ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा लगातार अपमान
  • अदालतें तालुकेदारों के खिलाफ फैसले देने लगीं

तालुकेदारों ने :

  • अपने निजी सैनिकों को विद्रोहियों से जोड़ दिया
  • खजाने और हथियार उपलब्ध कराए
  • स्थानीय प्रशासन पर हमला करवाया
  • अंग्रेजी पुलिस को गाँवों में घुसने से रोका

कुछ तालुकेदार अंग्रेजों के साथ भी थे क्योंकि—

  • अंग्रेजों से आर्थिक सुविधाएँ मिली थीं
  • सत्ता की लालसा
  • अपने विरोधी तालुकेदार समूहों से बदला लेना

इस प्रकार विद्रोह की प्रकृति हर इलाके में अलग रही।


महिलाएँ : अनदेखे नायक

इतिहास में अक्सर महिलाओं का योगदान छुप जाता है, लेकिन 1857 में—

  • महिलाएँ रसद–भोजन, औषधि और धन उपलब्ध कराती थीं
  • संदेश और गुप्त पत्र ले जाती थीं
  • कई स्थानों पर युद्ध में सीधे शामिल हुईं
  • गाँवों में सुरक्षा और संचार व्यवस्था संभालती थीं

झाँसी की रानी, अवंतीबाई, बेगम हज़रत महल तो प्रतीक हैं ही—
लेकिन छोटे गाँवों की अनगिनत महिलाएँ गुमनाम नायिका हैं।


ग्रामीण विद्रोहों के केंद्र और उनका विस्तार

अवध ग्रामीण विद्रोह का सबसे बड़ा केंद्र बना क्योंकि—

  • तालुकेदारों की शक्तियाँ छीनी गईं
  • भूमि-राजस्व बढ़ा
  • बेगम हज़रत महल का मजबूत नेतृत्व
  • सेना में अवध के सैनिकों की संख्या सबसे अधिक

कैसरबाग, फैजाबाद, बाराबंकी, रायबरेली, लखनऊ प्रमुख केंद्र थे।

  • कुनवर सिंह का नेतृत्व
  • अंग्रेजों से ज़मीनें छीनी जा रही थीं
  • सूदखोरों का अत्यधिक अत्याचार
  • सैनिकों और किसानों की संयुक्त भागीदारी

मध्य भारत

  • झाँसी, मोरार, ग्वालियर
  • नारी नेतृत्व (रानी लक्ष्मीबाई)
  • किसानों और सैनिकों की संयुक्त लड़ाई
  • पारंपरिक तालुकेदार असंतोष
  • लगान के मुद्दे बहुत बड़े पैमाने पर

विद्रोह के दौरान गाँव–शहर संबंध

  • भोजन, लकड़ी, पानी, बैलगाड़ी
  • किलेबंदी के लिए मजदूर
  • सूचनाएँ भेजने के लिए दूत

कई शहरों ने ग्रामीण विद्रोहियों को :

  • शरण
  • हथियार
  • आर्थिक सहायता

प्रदान की।

यह भारतीय समाज की एकता और सांस्कृतिक शक्ति का परिचायक था।


ब्रिटिश दमन नीति

ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह दबाने के लिए अत्यंत क्रूर तरीकों का प्रयोग किया।

  • सार्वजनिक फाँसी
  • तोप से उड़ाना
  • गाँवों में आग लगाना
  • खेती नष्ट करना
  • तालुकेदारों की भूमि जब्त
  • महिलाओं और बच्चों को बेघर करना

ब्रिटिशों ने आपात कानून लागू किए :

  • किसी भी संदेही को तुरंत गोली मार देने का अधिकार
  • अदालतें बंद
  • विशेष सैन्य दंड

किसी एक व्यक्ति के विद्रोही होने पर—

  • पूरे गाँव पर टैक्स
  • संपत्ति जब्त
  • पानी के स्रोत बंद करना

ये नीतियाँ जनता में भय पैदा करने के लिए थीं।


विद्रोह पर ब्रिटिशों की प्रतिक्रियाएँ

विद्रोह के बाद ब्रिटिशों ने यह स्वीकार किया कि:

  • भूमि व्यवस्था बदलनी होगी
  • तालुकेदारों को पुनः महत्व देना होगा
  • किसानों पर लगान की मात्रा कम करनी होगी
  • सामाजिक सुधारों को धीमा करना होगा
  • राजाओं की प्रजा पर अधिकार बढ़ाना होगा

इसका परिणाम था कि 1858 के बाद:

  • ईस्ट इंडिया कंपनी समाप्त
  • भारत सीधा ब्रिटिश सरकार के अधीन
  • रानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र
  • धर्म में हस्तक्षेप न करने का वादा

विद्रोह का सामाजिक महत्व

1857 केवल एक लड़ाई नहीं थी।
यह था :

  • लोक आक्रोश
  • जनता की एकता
  • शोषण के विरुद्ध संघर्ष
  • सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
  • किसान–सैनिक–तालुकेदार–महिलाओं की संयुक्त क्रांति

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे भारतीय राष्ट्रीय चेतना की शुरुआत कहा


1857 के प्रमुख केंद्र (मानचित्र आधारित विश्लेषण)

1857 का विद्रोह उत्तर भारत, मध्य भारत और पूर्वी भारत के बड़े हिस्से में फैला।
यहाँ हम NCERT में दिए गए मानचित्र तथा विस्तार को बिंदुवार समझते हैं।

  • मेरठ : विद्रोह का प्रारंभिक बिंदु
  • दिल्ली : बहादुर शाह ज़फर का प्रतीकात्मक नेतृत्व
  • कानपुर : नाना साहेब का मुख्यालय
  • लखनऊ : बेगम हज़रत महल का संचालन
  • झाँसी : रानी लक्ष्मीबाई
  • ग्वालियर : तात्या टोपे की गतिविधियाँ
  • बरेली : खान बहादुर खाँ
  • फैजाबाद : मौलवी अहमदुल्लाह शाह

पूर्वी भारत

  • बिहार :
    • जगदीशपुर (कुनवर सिंह)
    • आरा
    • दीनापुर

मध्य भारत

  • झाँसी, मोरार, ग्वालियर
  • ओरछा, कानपुर से जुड़े क्षेत्र
  • बिजनौर
  • बरेली
  • शाहजहाँपुर
  • सामान्यतः शांत रहा
  • केवल कुछ छोटे स्थानीय विरोध

विद्रोह का नेतृत्व : विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की प्रकृति

  • सैनिक विद्रोही
  • किसी औपचारिक नेता का अभाव
  • स्वतःस्फूर्त विद्रोह
  • बुजुर्ग, कमजोर, परंपरा और सम्मान का प्रतीक
  • वास्तविक शक्ति पतले आधार पर
  • लेकिन “बादशाह” बनने के बाद विद्रोह को वैधता मिली
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र
  • अंग्रेजों ने पेंशन छीन ली थी
  • कानपुर का केंद्र बेहद संगठित
  • तात्या टोपे मुख्य सैन्य कमांडर
  • अंग्रेजों ने गोद लिए पुत्र को मान्यता नहीं दी
  • ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति
  • धैर्य, वीरता और आधुनिक युद्ध कौशल
  • महिलाओं में क्रांतिकारी भावनाओं का नेतृत्व
  • अंग्रेजों द्वारा वाजिद अली शाह का अपदस्थ होना
  • महिला नेतृत्व का दुर्लभ उदाहरण
  • किसानों और तालुकेदारों का कठोर विरोध
  • 80 वर्ष की आयु में युद्ध
  • कुशल तलवारबाज़
  • स्थानीय किसानों और जमींदारों की संयुक्त सेना बनाई
  • धार्मिक नेता
  • अत्यंत प्रभावशाली
  • अंग्रेजों द्वारा “सबसे खतरनाक विद्रोही” घोषित
  • रोहिल्ला नेता
  • संगठित सैन्य रणनीति
  • विद्रोहियों में अत्यधिक सम्मान

विभिन्न समुदायों की भूमिका

1857 का विद्रोह भारतीय समाज की सांप्रदायिक एकता का प्रतीक था।

  • ब्राह्मण सैनिकों ने कारतूस विवाद को सबसे पहले उठाया
  • ग्रामीण किसान और तालुकेदार मुख्य शक्ति
  • अयोध्या, कानपुर, झाँसी हिंदू नेतृत्व के केंद्र
  • बहादुर शाह ज़फर प्रतीकात्मक नेता
  • मौलवी अहमदुल्लाह, खान बहादुर खाँ मुख्य योद्धा
  • अवध, दिल्ली और रोहिलखंड मुस्लिम नेतृत्व के महत्वपूर्ण क्षेत्र
  • पंजाब में अंग्रेजों की मजबूत पकड़
  • सिख राज की गद्दी अंग्रेजों के पास जाने के कारण विरोध अपेक्षाकृत कम
  • कुछ सिख विद्रोहियों ने दिल्ली में सहयोग भी दिया
  • भागलपुर, छोटानागपुर में विद्रोह के छोटे केंद्र
  • भूमिहीनता, जबरन लगान, जंगल बंदोबस्त विरोध
  • कई जगह बराबरी से शामिल
  • उन्हें दमनकारी जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष का अवसर मिला

➡️ 1857 साम्प्रदायिक विद्रोह नहीं—एक व्यापक सामाजिक संघर्ष था।


अफवाहों और भविष्यवाणियों की भूमिका

सबसे बड़ा कारक—

  • नई एनफील्ड रायफल
  • कारतूस का कागज़ मुँह से काटना पड़ता था
  • गाय और सूअर की चर्बी की अफवाह
  • धार्मिक अपवित्रता का भय
  • सैनिकों ने इसे अपने “धर्म पर हमला” माना
  • जनता को लगा कि अंग्रेज धर्म नष्ट करना चाहते हैं
  • लोगों में अफवाह कि
    • “सरकार सभी कुओं में मिलावट कर रही है”
    • “हिन्दू–मुस्लिम को एक धर्म में बदल दिया जाएगा”
  • पचास साल बाद कंपनी का शासन समाप्त होने वाला है
  • “समय पूरा हो गया है” जैसी बातें
  • पुराने संतों और फ़क़ीरों ने बदलते समय की भविष्यवाणी की थी

➡️ इन अफवाहों और भविष्यवाणियों ने मनोवैज्ञानिक रूप से जनता को क्रांति के लिए तैयार किया।


अंग्रेजों द्वारा प्रचार–प्रसार और भय का माहौल

ब्रिटिश शासन ने विद्रोह को दबाने के लिए मनोवैज्ञानिक युद्ध भी चलाया।

  • विद्रोहियों को “गुंडों”, “डाकुओं”, “हत्यारों” के रूप में प्रस्तुत किया
  • अंग्रेज महिलाओं और बच्चों की मौत को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया
  • भारत में अंग्रेजों के लिए “राष्ट्रवादी समर्थन” पैदा करने की कोशिश
  • यह कहा गया कि मुस्लिम विद्रोही ‘धर्म युद्ध’ कर रहे हैं
  • हिंदू विद्रोहियों को “अंधभक्त” कहा गया
  • बहादुर शाह ज़फर को “नकली बादशाह” कहा
  • रानी लक्ष्मीबाई को “खतरनाक औरत” और “दुश्मन नंबर-1” बताया
  • नाना साहेब को “देशद्रोही” कहा गया

➡️ यह दर्शाता है कि ब्रिटिश शासन खुद ही साम्प्रदायिकता फैलाकर विद्रोह को कमजोर दिखाना चाहता था।


ब्रिटिश अधिकारियों के निजी विवरण : विद्रोह पर एकपक्षीय दृष्टि

  • विद्रोहियों को अत्यधिक क्रूर बताया
  • भारतीयों की ‘असभ्यता’ का उल्लेख
  • अंग्रेजी शासन को “सभ्यता प्रदाता” की तरह पेश किया
  • भारतीय सैनिकों की “निष्ठा पर शंका”
  • भारतीय समाज को “बर्बर” और “असभ्य” कहा
  • विद्रोह को “धर्म का पागलपन” कहा
  • अपने परिवार की हत्या से भावुक विवरण
  • भारतीयों के प्रति घृणा
  • भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाने की कोशिश

➡️ इन सबके बावजूद—भारतीय स्रोतों में विद्रोह को “स्वाधीनता का प्रथम संग्राम” कहा गया।


साधु–फकीरों, कारीगरों और आम जनता की भूमिका

साधु–फकीर

  • संदेशवाहक
  • जनता को प्रेरित करने वाला
  • विद्रोहियों को सुरक्षित मार्ग प्रदान करने वाला

बढ़ई, लोहार, कारीगर

  • हथियार, गोलियाँ, तलवारें, लोहे के औज़ार बनाना
  • किलेबंदी में मदद
  • रसद व्यवस्था संभालना

आम जनता

  • भोजन, पानी, घर, छिपने की जगह
  • खुफ़िया जानकारी देना
  • घोड़ों, बैलगाड़ियों और मजदूर उपलब्ध कराना

➡️ विद्रोह केवल सैनिक नहीं—जनता की शक्ति से चल रहा था।


विद्रोह का दमन (Suppression of the Revolt)

1857 का विद्रोह पूरे उत्तर भारत में तेज़ी से फैल गया था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, अंग्रेजी सेना ने अपनी शक्तियों को संगठित किया और विद्रोह को अत्यंत कठोरता के साथ दबा दिया।


  • शुरुआती झटके के बाद अंग्रेजों ने पंजाब, बंगाल, और बर्मा से नई टुकड़ियाँ मंगाईं।
  • ब्रिटिश अधिकारियों ने सिख, पठान, गोरखा, मद्रासी और बर्मी सैनिकों को बड़ी संख्या में भर्ती किया।
  • उत्तर भारत के युद्धस्थलों पर तैनात किया गया।
  • Divide and Rule” नीति अपनाई गई।
  • गाँवों को जलाना, जनता को फाँसी देना, संदिग्धों को बिना सुनवाई के गोली मारना—सामान्य रणनीति बन गई।
  • हजारों भारतीयों को पेड़ों पर लटकाकर” अंग्रेजी सैन्य दल आगे बढ़ते।
  • कर्नल नील,
  • सर हेनरी हैवलॉक,
  • कैंपबेल,
  • ह्यू रोज़ जैसे जनरलों ने कठोर सैन्य कार्रवाई का नेतृत्व किया।
  • भारतीयों और विद्रोही सैनिकों को किसी भी प्रकार की दया नहीं दिखाई गई।

दिल्ली का पतन (Fall of Delhi)

  • अंग्रेजों ने दिल्ली को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई।
  • पंजाब से आने वाले सिख व यूरोपीय सैनिकों ने दिल्ली को चारों ओर से घेरा।
  • लगभग चार महीने की लड़ाई चली।
  • सैनिकों में खाद्य सामग्री और बारूद की कमी।
  • बहादुर शाह ज़फर बुजुर्ग थे; कोई स्पष्ट सैन्य नेतृत्व नहीं।
  • विद्रोहियों में भी अनुशासन की कमी।
  • अंग्रेजों ने कश्मीरी गेट से शहर में प्रवेश किया।
  • भारी संख्या में भारतीय सैनिक मारे गए।
  • बहादुर शाह ज़फर को गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया गया।
  • उनके पुत्रों को कोतवाली के सामने गोली मार दी गई।
  • दिल्ली की आम जनता पर बर्बर अत्याचार किए गए।

➡️ दिल्ली की हार विद्रोह की रीढ़ टूटने जैसी थी।


कानपुर का संघर्ष (Kanpur Campaign)

कानपुर विद्रोह की ताकत

  • नाना साहेब का मुख्यालय
  • तात्या टोपे की नेतृत्व क्षमता
  • संगठित सैन्य रणनीति

अंग्रेजों का हमला

  • कर्नल नील और हैवलॉक ने कानपुर पर हमला किया।
  • भीषण युद्ध के बाद विद्रोही सेनाएँ पीछे हटने लगीं।

बीबीगढ़ कांड (Bibighar Incident)

NCERT में वर्णित—

  • अंग्रेज महिलाओं और बच्चों की हत्या
  • अंग्रेजों ने इसका खूब प्रचार किया
  • ब्रिटिश अखबारों में इसे “सबसे भयानक नरसंहार” बताया गया
  • इसका उपयोग अत्याचार को उचित ठहराने के लिए किया गया

कानपुर का पतन

  • अंग्रेजों ने शहर पर फिर कब्जा कर लिया।
  • नाना साहेब भागकर नेपाल सीमा की ओर चले गए।
  • तात्या टोपे ने मध्य भारत में युद्ध जारी रखा।

लखनऊ का संघर्ष (Lucknow Campaign)

अवध विद्रोह का सबसे बड़ा केंद्र

  • जमींदार, किसान, तलवारबंद रायतो का बड़ा समर्थन
  • बेगम हज़रत महल का नेतृत्व
  • अवध नवाब के प्रति भावनात्मक जुड़ाव

लखनऊ की घेराबंदी

  • अंग्रेज रेजीडेंसी में फँस गए
  • 90 दिनों तक घेराबंदी
  • हजारों लोग मारे गए

अंग्रेजों की वापसी

  • कैंपबेल और हैवलॉक की मिश्रित सेना
  • घेराबंदी को तोड़कर अंग्रेजों ने लखनऊ पर कब्जा किया
  • बेगम हज़रत महल नेपाल चली गईं

➡️ लखनऊ की लड़ाई विद्रोह के सबसे शक्तिशाली युद्धों में से एक थी।


झाँसी और ग्वालियर – रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

झाँसी का विद्रोह

  • अंग्रेजों ने झाँसी पर हमला किया
  • रानी ने अभूतपूर्व सैन्य कौशल दिखाया
  • घोड़े पर बंधे अपने पुत्र के साथ लड़ाई
  • अंततः झाँसी पर अंग्रेजों का कब्जा

ग्वालियर की ओर वापसी

  • रानी और तात्या टोपे ने ग्वालियर पर कब्जा किया
  • ग्वालियर राज्य की सेना का भी समर्थन मिला

रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान

  • अंग्रेज सेना ने ग्वालियर पर तेज़ हमला किया
  • रानी युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त
  • अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें “खतरनाक विद्रोही” कहा

तात्या टोपे का संघर्ष

  • तात्या टोपे ने लगभग एक वर्ष तक पारितंत्र युद्ध (guerrilla warfare) जारी रखा
  • एक मित्र द्वारा धोखा मिलने पर पकड़े गए
  • उन्हें फाँसी दी गई

➡️ रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे विद्रोह के सबसे प्रेरक चरित्र हैं।


बाकी मोर्चे – बरेली, बिहार, रोहिलखंड, मध्य भारत

बरेली – खान बहादुर खाँ

  • बड़ी सेना खड़ी की
  • अंग्रेजी सेना से कड़ा संघर्ष
  • अंततः हार का सामना

बिहार – कुनवर सिंह

  • 80 वर्ष की आयु में युद्ध
  • आरा और जगदीशपुर में बड़ा संघर्ष
  • गंगा नदी को पार करते समय हाथ में गोली
  • अपना घायल हाथ काटकर नदी में फेंक दिया
  • बाद में निधन

फ़ैजाबाद – मौलवी अहमदुल्लाह शाह

  • अंग्रेजों ने उन्हें सबसे खतरनाक विद्रोही कहा
  • बड़ी संख्या में जनता का समर्थन
  • अंततः एक तालुकेदार ने धोखे से हत्या कर दी

विद्रोह की पराजय के कारण

NCERT में 1857 की असफलता के विश्लेषण को बहुत विस्तार से दिया गया है — यहाँ सभी बिंदु शामिल हैं :

(1) एकता का अभाव

  • कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं
  • विद्रोह क्षेत्रीय था
  • दक्षिण और पंजाब में समर्थन कमजोर

(2) विद्रोहियों के पास आधुनिक हथियारों की कमी

  • बारूद, बंदूकें, तोपें—सब सीमित
  • अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार, रेल, तार प्रणाली

(3) अंग्रेजों की संगठित सैन्य शक्ति

  • श्रेष्ठ संगठन
  • बेहतर कमांड
  • नई सेनाओं की तेजी से आपूर्ति

(4) सिख, पठान और गोरखा सैनिकों का अंग्रेजों का साथ

  • 1849 में पंजाब पर अंग्रेज कब्जा हुए थे
  • सिखों को मुगलों और मराठों से शिकायतें थीं

(5) नीतियों में मतभेद

  • तालुकेदार बनाम किसान
  • उच्च जाति बनाम निम्न जाति
  • हिंदू–मुस्लिम धार्मिक मतभेद (कुछ क्षेत्रों में)

(6) लक्ष्य अस्पष्ट थे

  • कुछ बहादुर शाह ज़फर को चाहते थे
  • कुछ मराठा शासन
  • कुछ स्थानीय राजा

(7) आर्थिक संसाधनों की कमी

  • अंग्रेजों की तुलना में विद्रोही आर्थिक रूप से कमजोर

➡️ पराजय के बावजूद यह विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सबसे बड़ा झटका था।


1858 का शासन अधिनियम (Government of India Act, 1858)

विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया।

मुख्य प्रावधान :

(a) शासन का हस्तांतरण

  • सत्ता ब्रिटिश क्राउन (रानी) के हाथों में
  • वायसराय पद की स्थापना
  • कंपनी की दोहरी सरकार समाप्त

(b) भारतीयों को आश्वासन

  • धार्मिक हस्तक्षेप न करने का वचन
  • भारतीय राजाओं की बेदखली की नीति (Doctrine of Lapse) समाप्त
  • भूमि कर नीति में बदलाव का संकेत

(c) भारतीयों की भर्ती में बदलाव

  • उच्च पदों पर यूरोपीय
  • सैनिकों में भारतीयों का अनुपात घटाया गया
  • ‘Divide and Rule’ आधार पर भर्ती नीति

रानी की घोषणा (Queen’s Proclamation, 1858)

रानी विक्टोरिया ने भारतीयों के लिए “नया शासन मंत्र” घोषित किया।

मुख्य बिंदु :

  • धार्मिक स्वतंत्रता
  • न्याय में समानता
  • भारतीय संपत्ति और राजाओं की सुरक्षा
  • युद्ध और प्रतिशोध की नीतियों में संयम
  • प्रशासनिक पदों में “योग्यता आधारित भर्ती”

➡️ इतिहासकार कहते हैं :
यह घोषणा अंग्रेजों की राजनीतिक मजबूरी थी, मानवतावाद नहीं।


विद्रोह के दूरगामी प्रभाव

(1) ब्रिटिश शासन स्थायी रूप से बदल गया

(2) भारतीय राष्ट्रवाद का बीज बोया गया

(3) सेना का पुनर्गठन—‘Divide and Rule’ की शुरुआत

(4) आधुनिक प्रशासन की स्थापना

(5) भारतीय समाज में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरी घृणा

➡️ 1857 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी थी जिसने आगे चलकर
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की नींव रखी।

___________समाप्त_______________

SmartToolsWala Tools
Try SmartToolsWala – Free Online Tools for Everyone (Fast & Clean UI)

Leave a Comment